एक बहुत बड़े पंडितजी रहते हैं।जिनकी ख्याति दूर- दूर तक फैली होती है।उनके प्रवचन सुनने के लिए लोग दूर -दूर से आते हैं।पंडितजी को इस बात का बड़ा घमण्ड रहता है।वो हमेशा अपनी तारीफ सुन्ना पसंद करते हैं ।एक बार सावन के महीने मे एक गांव मे भगवत कथा करनी होती है।पंडितजी के गांव और उस गांव के बीच एक बड़ी नदी बहती है ।जिसे नाव के द्वारा पर करना पड़ता है।पंडितजी शाम के समय नदी किनारे पहुचते है।वहां पर नाव चलने वाले मल्लाह को बुलाकर कहते हैं कि मुझे जल्दी नदी पर कर दो बहुत जरूरी काम है। मल्लाह हाथ जोड़कर बोलता है पंडितजी कुछ लोग और आजाएं तो मुझे थोड़ा फायदा हो जायेगा।पंडितजी गुस्से से लाल आंख करते हुए बोलते है मुर्ख तू जनता है मैं कौन हूँ।मेरा थोड़ा सा समय भी बहुत कीमती है।तू मुझ अकेले को नदी पर करायेगा तो मे तुझे किराया तो दूँगा ही साथ मे बहुत सारा घ्यान भी दूँगा जिससे तेरा उद्धार होगा।मल्लाह ने हाथ जोडकर कहा पंडितजी पश्चिम मे घनघोर घटायें उठ आयी हैं।शाम भी हो गयी है ऐसे मे नदी मे नाव डालना उचित नही होगा।यह सुनकर पंडितजी बहुत भड़क जाते है।बहुत गुस्से से बोलते हैं कि अब एक मुर्ख मल्लाह मुझे सिखायेगा चुपचाप मुझे नदी पर करा दो नही तो तुम्हारी खेर नही।विचारा मल्लाह नदी मे नाव डाल देता है।पंडितजी बड़े अभिमान से नाव पर बैठ जाते हैं।कुछ देर बाद मल्लाह से पूछते हैं तुम्हारा नाम क्या है।मल्लाह-जी भोला नाम है ।पंडितजी फिर चुप हो जाते हैं कुछ देर बाद पंडितजी- भोला तुमने कितनी शिक्षा प्राप्त की है।मल्लाह-पंडितजी मैंने तो शाला का मुंह तक नही देखा।पंडितजी-मुर्ख तुम्हारा एक तिहाई जीवन बर्बाद हो गया।फिर पंडित जी- ” शिक्षा प्राप्त नही की तो कोई बात नही पर मेरे जैसे विद्वान् के प्रवचन तो सुने ही होंगे न।’ मल्लाह -“नही पंडितजी सारा समय तो इस नदी की गोद मे ही गुजरता है ।मेरा सौभाग्य ही कहाँ जो आप जैसे विद्वान् के बचनों को सुन सकूँ”।पंडितजी — “मुर्ख तेरे जीवन का एक तिहाई जीवन और बर्वाद हो गया”।
इस समय नाव बीच नदी में आ गयी चारों तरफ घनघोर बदल छा गए ।मल्लाह बोलता है ऐसा लगता है कि बहुत भारी बर्षा होने वाली है। सच मे बादल तेजी से गरजता है और चारों तरफ अँधेरा छा जाता है।बहुत तेज हवाओं के साथ भारी बर्षा शुरू हो जाती है।नाव मे पानी भरने लगता है। मल्लाह –“लगता है आज नदी हमे अपनी गोद मे समा लेगी पंडितजी आप को तैरना तो आता ही होगा”। यह सुनकर पंडितजी बहुत घबरा कर बोलते हैं नही भईया मुझे बिल्कुल भी तैरना नही आता। मलल्लाह बोलता है–“पंडितजी आपका तो सारा जीवन बर्वाद हो गया”।इतने मे नाव नदी म दुब जाती है।मल्लाह और पंडितजी दोनों नदी म गिरते हैं।मल्लाह के लिए नदी म तैरना कोई बड़ी बात भी रहती।लेकिन पंडितजी की हालत खराब हीने लगती है।मुह मे पानी भर जाता है।लेकिन मल्लाह जैसे तैसे पंडितजी को किनारे पर पंहुचा देता है।किनारे पर पहुँचकर मल्लाह –“पंडितजी ऐसा कोरा घज्ञान किस काम का जो समय आने पर साथ न दे सके।पंडितजी को आज सबसे बड़ी सीख मिली थी।जिसे वो चुपचाप सुनते रहते हैं।
very nice story bhai