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बैताल पचीसी – भवभूति | Baital Pachisi by Bhavabhuti in Hindi story
बैताल पच्चीसी राजा विक्रमादित्य के शासन की न्याय प्रियता का परिचय देती है। इस 25 रोचक कहानियों का संग्रह है जो एक से बढ़ कर एक हैं । हर कहानी के अंत में दिमाग को हिला देने वाला गूढ़ सवाल होता है । जिसे बैताल , राजा विक्रम से पूछता है।बैताल पच्चीसी की रचना बेताल भट्टराव ने की थी। ये kahaniyan भारत के साथ साथ अन्य देशों में भी कभी प्रसिद्ध । इन कहानियों का अन्य कई भाषााओं में भी अनुवाद हो चूका है । हम सभी 25 kahaniyan हमारी वेबसाइट inhindistory.com पर share करेंंगे ।
Starting of baital pachisi in hindi
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बैताल पचीसी |
In hindi story
प्राचीन काल की बात है, तब उज्जयनी (वर्तमान में उज्जैन) में महाराज विक्रमादित्य
राज किया करते थे। विक्रमादित्य हर प्रकार से एक आदर्श राजा थे। उनकी दानशीलता
की कहानियां आज भी देश के कोने-कोने में सुनी जाती हैं। राजा प्रतिदिन अपने दरबार
में आकर प्रजा के दुखों को सुनते व उनका निवारण किया करते थे। एक दिन राजा के
दरबार में एक भिक्षु आया और एक फल देकर चला गया। तब से वह भिक्षु प्रतिदिन
राजदरबार में पहुंचने लगा। वह राजा को एक फल देता और राजा उसे कोषाध्यक्ष को
सौंप देता। इस तरह दस वर्ष व्यतीत हो गए। हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षु
राजा को फल देकर चला गया तो राजा ने उस दिन फल को कोषाध्यक्ष को न देकर एक
पालतू बंदर के बच्चे को दे दिया जो महल के किसी सुरक्षाकर्मी का था और उससे छूटकर
राजा के पास चला आया था। उस फल को खाने के लिए जब बंदर के बच्चे ने उसे बीच
से तोड़ा तो उसके अंदर से एक बहुत ही उत्तम कोटि का बहुमूल्य रत्ल निकला। यह
देखकर राजा ने वह रल ले लिया और कोषाध्यक्ष को बुलाकर उससे पूछा- “मैं
रोज-रोज भिक्षु द्वारा लाया हुआ जो फल तुम्हें देता हूं, वे फल कहां हैं ?”
राज किया करते थे। विक्रमादित्य हर प्रकार से एक आदर्श राजा थे। उनकी दानशीलता
की कहानियां आज भी देश के कोने-कोने में सुनी जाती हैं। राजा प्रतिदिन अपने दरबार
में आकर प्रजा के दुखों को सुनते व उनका निवारण किया करते थे। एक दिन राजा के
दरबार में एक भिक्षु आया और एक फल देकर चला गया। तब से वह भिक्षु प्रतिदिन
राजदरबार में पहुंचने लगा। वह राजा को एक फल देता और राजा उसे कोषाध्यक्ष को
सौंप देता। इस तरह दस वर्ष व्यतीत हो गए। हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षु
राजा को फल देकर चला गया तो राजा ने उस दिन फल को कोषाध्यक्ष को न देकर एक
पालतू बंदर के बच्चे को दे दिया जो महल के किसी सुरक्षाकर्मी का था और उससे छूटकर
राजा के पास चला आया था। उस फल को खाने के लिए जब बंदर के बच्चे ने उसे बीच
से तोड़ा तो उसके अंदर से एक बहुत ही उत्तम कोटि का बहुमूल्य रत्ल निकला। यह
देखकर राजा ने वह रल ले लिया और कोषाध्यक्ष को बुलाकर उससे पूछा- “मैं
रोज-रोज भिक्षु द्वारा लाया हुआ जो फल तुम्हें देता हूं, वे फल कहां हैं ?”
राजा ने आज्ञा दी तो कोषाध्यक्ष रल-भंडार गया और कुछ ही देर बाद आकर
राजा को बताया-“प्रभु, वे फल तो सड़-गल गए, वे मुझे वहां नहीं दिखाई दिए।
हां, चमकती-झिलमिलाती रलों की एक राशि वहां अवश्य मौजूद है।” ।
राजा को बताया-“प्रभु, वे फल तो सड़-गल गए, वे मुझे वहां नहीं दिखाई दिए।
हां, चमकती-झिलमिलाती रलों की एक राशि वहां अवश्य मौजूद है।” ।
यह सुनकर राजा कोषाध्यक्ष पर प्रसन्न हुए और उसकी निष्ठा की प्रशंसा करते
हुए सारे रत्न उसे ही सौंप दिए। अगले दिन पहले की तरह जब वह भिक्षु फिर
राजदरबार में आया तो राजा ने उससे कहा-‘हे भिक्षु ! इतनी बहुमूल्य भेंट तुम
प्रतिदिन मुझे क्यों अर्पित करते हो ? अब मैं तब तक तुम्हारा यह फल ग्रहण नहीं
करूंगा, जब तक तुम इसका कारण नहीं बताओगे।”
हुए सारे रत्न उसे ही सौंप दिए। अगले दिन पहले की तरह जब वह भिक्षु फिर
राजदरबार में आया तो राजा ने उससे कहा-‘हे भिक्षु ! इतनी बहुमूल्य भेंट तुम
प्रतिदिन मुझे क्यों अर्पित करते हो ? अब मैं तब तक तुम्हारा यह फल ग्रहण नहीं
करूंगा, जब तक तुम इसका कारण नहीं बताओगे।”
राजा के कहने पर भिक्षु उन्हें अलग स्थान पर ले गया और उनसे कहा-“हे
राजन, मुझे एक मंत्र की साधना करनी है, जिसमें किसी वीर पुरुष की सहायता
अपेक्षित है। हे वीरश्रेष्ठ ! उस कार्य में मैं आपकी सहायता की याचना करता हूं।”
राजन, मुझे एक मंत्र की साधना करनी है, जिसमें किसी वीर पुरुष की सहायता
अपेक्षित है। हे वीरश्रेष्ठ ! उस कार्य में मैं आपकी सहायता की याचना करता हूं।”
यह सुनकर राजा ने उसकी सहायता करने का वचन दे दिया। तब संतुष्ट होकर
भिक्षु ने राजा से फिर कहा-“देव, तब मैं आगामी अमावस्या को यहां के
महाश्मशान में, बरगद के पेड़ के नीचे आपकी प्रतीक्षा करूंगा। आप कृपया वहीं मेरे
पास आ जाना।”
भिक्षु ने राजा से फिर कहा-“देव, तब मैं आगामी अमावस्या को यहां के
महाश्मशान में, बरगद के पेड़ के नीचे आपकी प्रतीक्षा करूंगा। आप कृपया वहीं मेरे
पास आ जाना।”
“ठीक है, मै ऐसा ही करूंगा।” राजा ने उसे आश्वस्त किया । तब वह भिक्षु संतुष्टहोकर अपने घर चला गया। जब अमावस्या आई, तो राजा को भिक्षु को दिए अपने
वचन का स्मरण हो आया और वह नीले कपड़े पहन, माथे पर चंदन लगाकर तथा हाथ में
तलवार लेकर गुप्त रूप से राजधानी से निकल पड़ा। राजा उस श्मशान में पहुंचा, जहां
भयानक गहरा और घुप्प अंधेरा छाया हुआ था। वहां जलने वाली चिताओं की लपटें
बहुत भयानक दिखाई दे रही थीं। असंख्य नर-कंकाल, खोपड़ियां एवं हड्डियां इधर-उधर
बिखरी पड़ी थीं। समूचा श्मशान भूत-पिशाचों से भरा पड़ा था और सियारों की डरावनी
वचन का स्मरण हो आया और वह नीले कपड़े पहन, माथे पर चंदन लगाकर तथा हाथ में
तलवार लेकर गुप्त रूप से राजधानी से निकल पड़ा। राजा उस श्मशान में पहुंचा, जहां
भयानक गहरा और घुप्प अंधेरा छाया हुआ था। वहां जलने वाली चिताओं की लपटें
बहुत भयानक दिखाई दे रही थीं। असंख्य नर-कंकाल, खोपड़ियां एवं हड्डियां इधर-उधर
बिखरी पड़ी थीं। समूचा श्मशान भूत-पिशाचों से भरा पड़ा था और सियारों की डरावनी
आवाजें श्मशान की भयानकता को और भी ज्यादा बढ़ा रही थीं। निर्भय होकर राजा ने
वहां उस भिक्षु को ढूंढा । भिक्षु एक वट-वृक्ष के नीचे मंडल बना रहा था। राजा ने उसके
निकट जाकर कहा-“भिक्षु, मैं आ गया हूं। बताओ, मुझे क्या करना होगा ?” राजा
को उपस्थित देखकर भिक्षु बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा-“राजन ! यदि आपने मुझ
पर इतनी कृपा की है तो एक कृपा और कीजिए, आप यहां से दक्षिण की ओर जाइए।
यहां से बहुत दूर,श्मशान के उस छोर पर आपको शिशपा (शीशम) का एक विशाल वृक्ष
मिलेगा । उस पर एक मरे हुए मनुष्य का शरीर लटक रहा है। आप उस शव को यहां ले
वहां उस भिक्षु को ढूंढा । भिक्षु एक वट-वृक्ष के नीचे मंडल बना रहा था। राजा ने उसके
निकट जाकर कहा-“भिक्षु, मैं आ गया हूं। बताओ, मुझे क्या करना होगा ?” राजा
को उपस्थित देखकर भिक्षु बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा-“राजन ! यदि आपने मुझ
पर इतनी कृपा की है तो एक कृपा और कीजिए, आप यहां से दक्षिण की ओर जाइए।
यहां से बहुत दूर,श्मशान के उस छोर पर आपको शिशपा (शीशम) का एक विशाल वृक्ष
मिलेगा । उस पर एक मरे हुए मनुष्य का शरीर लटक रहा है। आप उस शव को यहां ले
आइए और मेरा कार्य पूरा कीजिए।” राजा विक्रमादित्य भिक्षु की बात मानकर वहां से
दक्षिण की ओर चल पड़े।
___जलती हुई चिताओं के प्रकाश के सहारे वे उस अंधकार में आगे बढ़ते गए और
बड़ी कठिनाई से उस वृक्ष को खोज पाए। वह वृक्ष चिताओं के धुएं के कारण काला
पड़ गया था। उससे जलते हुए मांस की गंध आ रही थी। उसकी एक शाखा पर
एक शव इस प्रकार लटका हुआ था जैसे किसी प्रेत के कंधे पर लटक रहा हो। राजा
ने वृक्ष पर चढ़कर अपनी तलवार से डोरी काट डाली और शव को जमीन पर गिरा
दिया। नीचे गिरकर वह शव बड़ी जोर से चीख उठा, जैसे उसे बहुत पीड़ा पहुंची
हो। राजा ने समझा कि वह मनुष्य जीवित है। राजा को उस पर दया आई।
अचानक उस शव ने जोर से अट्टाहस किया। तब राजा समझ गया कि उस पर
बेताल चढ़ा हुआ है। राजा उसके अट्टहास करने का कारण जानने की कोशिश कर
रहा था कि अचानक शव में हरकत हुई और वह हवा में उड़ता हुआ पुनः उसी शाखा
पर जा लटका। इस पर राजा एक बार फिर से वृक्ष पर चढ़ा और शव को पुनः नीचे
उतार लिया। फिर राजा ने उस शव को अपने कंधे पर डाला और खामोशी से भिक्षु
की ओर चल पड़ा। कुछ दूर चलने पर राजा के कंधे पर सवार शव के अंदर का
बेताल बोला-“राजन, मुझे ले जाने के लिए तुम्हें बहुत परिश्रम करना पड़ रहा है।
तुम्हारे श्रम के कष्ट को दूर करने एवं समय बिताने के लिए मैं तुम्हें एक कथा सुनाना
चाहता हूं। किंतु कथा के दौरान तुम मौन ही रहना | यदि तुमने अपना मौन तोड़ा तो
मैं तुम्हारी पकड़ से छूटकर पुनः अपने स्थान को लौट जाऊंगा। राजा द्वारा सहमति
जताने पर बेताल ने उसे एक रोचक कथा सुनाई।
दक्षिण की ओर चल पड़े।
___जलती हुई चिताओं के प्रकाश के सहारे वे उस अंधकार में आगे बढ़ते गए और
बड़ी कठिनाई से उस वृक्ष को खोज पाए। वह वृक्ष चिताओं के धुएं के कारण काला
पड़ गया था। उससे जलते हुए मांस की गंध आ रही थी। उसकी एक शाखा पर
एक शव इस प्रकार लटका हुआ था जैसे किसी प्रेत के कंधे पर लटक रहा हो। राजा
ने वृक्ष पर चढ़कर अपनी तलवार से डोरी काट डाली और शव को जमीन पर गिरा
दिया। नीचे गिरकर वह शव बड़ी जोर से चीख उठा, जैसे उसे बहुत पीड़ा पहुंची
हो। राजा ने समझा कि वह मनुष्य जीवित है। राजा को उस पर दया आई।
अचानक उस शव ने जोर से अट्टाहस किया। तब राजा समझ गया कि उस पर
बेताल चढ़ा हुआ है। राजा उसके अट्टहास करने का कारण जानने की कोशिश कर
रहा था कि अचानक शव में हरकत हुई और वह हवा में उड़ता हुआ पुनः उसी शाखा
पर जा लटका। इस पर राजा एक बार फिर से वृक्ष पर चढ़ा और शव को पुनः नीचे
उतार लिया। फिर राजा ने उस शव को अपने कंधे पर डाला और खामोशी से भिक्षु
की ओर चल पड़ा। कुछ दूर चलने पर राजा के कंधे पर सवार शव के अंदर का
बेताल बोला-“राजन, मुझे ले जाने के लिए तुम्हें बहुत परिश्रम करना पड़ रहा है।
तुम्हारे श्रम के कष्ट को दूर करने एवं समय बिताने के लिए मैं तुम्हें एक कथा सुनाना
चाहता हूं। किंतु कथा के दौरान तुम मौन ही रहना | यदि तुमने अपना मौन तोड़ा तो
मैं तुम्हारी पकड़ से छूटकर पुनः अपने स्थान को लौट जाऊंगा। राजा द्वारा सहमति
जताने पर बेताल ने उसे एक रोचक कथा सुनाई।
दोस्तों जल्द है बैताल पच्चीसी की प्रथम कहानी post करेंगे । आपको यदि आपको यह स्टोरी पसंद आयी तो शेयर जरूर करें।
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