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10 Best desh bhakti poem in hindi | देश भक्ति की सर्वश्रेष्ठ कविताएँ

10 Best desh bhakti poem in hindi ये पोस्ट आपके इस स्वतंत्रता दिवस को स्पेशल बना देगी। नमस्कार दोस्तों आप का स्वागत है हमारी वेबसाइट inhindistory.com पर आज हम आपके लिए बेस्ट देश भक्ति कविताओं का एक छोटा सा संग्रह लेकर आये हैं। उम्मीद है आप को हमारी ये पोस्ट पसंद आएगी।

1. ये दिया बुझे नही / ye diya bujhe nhi desh bhakti kavita

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देश भक्ति कविताएँ

घोर अंधकार हो,
चल रही बयार हो,
आज द्वार–द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है ।

शक्ति का दिया हुआ,
शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ,
यह स्वतंत्रता–दिया,
रूक रही न नाव हो
जोर का बहाव हो,
आज गंग–धार पर यह दिया बुझे नहीं,
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है ।

यह अतीत कल्पना,
यह विनीत प्रार्थना,
यह पुनीत भावना,
यह अनंत साधना,
शांति हो, अशांति हो,
युद्ध¸ संधि¸ क्रांति हो,
तीर पर, कछार पर, यह दिया बुझे नहीं,
देश पर, समाज पर, ज्योति का वितान है ।

तीन–चार फूल है,
आस–पास धूल है,
बांस है –बबूल है,
घास के दुकूल है,
वायु भी हिलोर दे,
फूंक दे¸ चकोर दे,
कब्र पर मजार पर, यह दिया बुझे नहीं,
यह किसी शहीद का पुण्य–प्राण दान है।

झूम–झूम बदलियाँ
चूम–चूम बिजलियाँ
आंधिया उठा रहीं
हलचलें मचा रहीं
लड़ रहा स्वदेश हो,
यातना विशेष हो,
क्षुद्र जीत–हार पर¸ यह दिया बुझे नहीं,
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है ।

– गोपाल सिंह नेपाली

2. कदम मिलाकर चलना होगा कविता / atal bihari desh bhakti kavita kadam milakar chalna hoga|10 Best desh bhakti poem in hindi

Best hindi poem

क़दम मिला कर चलना होगा 

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा। 

3. पुनः चमकेगा दिनकर / atal bihari kavita punah chalega dinkar|10 Best desh bhakti poem in hindi

आज़ादी का दिन ममननई ग़ुलामी बीच;
सूखी धरती, सूना अंबर,
मन-आंगन में कीच;
मन-आंगम में कीच,
कमल सारे मुरझाए;
एक-एक कर बुझे दीप,
अंधियारे छाए;
कह क़ैदी कबिराय
न अपना छोटा जी कर;
चीर निशा का वक्ष
पुनः चमकेगा दिनकर। 

4. राम प्रसाद बिस्मिल कविता आजादी/ Ram prasad bismil poem Azadi |10 Best desh bhakti poem in hindi

इलाही ख़ैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,
हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं।

कभी आज़ाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं।
मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं।

असीराने-क़फ़स से काश, यह सैयाद कह देता,
रहो आज़ाद होकर, हम तुम्हें आज़ाद करते हैं।

रहा करता है अहले-ग़म को क्या-क्या इंतज़ार इसका,
कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं।

यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कै़दे-उल्फ़त मंे,
वो अब आज़ाद करते हैं, वो अब आज़ाद करते हैं।

सितम ऐसा नहीं देखा, जफ़ा ऐसी नहीं देखी,
वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं।

यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते,
हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?

कोई बिस्मिल बनाता है, जो मक़तल में हमंे ‘बिस्मिल’,
तो हम डरकर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं।

5. पुष्प की अभिलाषा / Makhanalal chaturvedi poem pushp ki abhilasha

चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक।

6. झंडा गीत श्यामलाल गुप्त ‘ पार्षद’/ jhanda geet shyamlal gupt parshad

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।

सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला,

वीरों को हरषाने वाला,
मातृभूमि का तन-मन सारा।। झंडा…।

स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर बढ़े जोश क्षण-क्षण में,

कांपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जाए भय संकट सारा।। झंडा…।

इस झंडे के नीचे निर्भय,
लें स्वराज्य यह अविचल निश्चय,

बोलें भारत माता की जय,
स्वतंत्रता हो ध्येय हमारा।। झंडा…।

आओ! प्यारे वीरो, आओ।
देश-धर्म पर बलि-बलि जाओ,

एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा।। झंडा…।

इसकी शान न जाने पाए,
चाहे जान भले ही जाए,

विश्व-विजय करके दिखलाएं,
तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।। झंडा…।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।

7. बहुत हो चुका अब हमें इंसाफ मिलना चाहिए कविता

बहुत हो चुका अब हमें इन्साफ मिलना चाहिए
खदेड़कर धुंध स्याह,नभ साफ़ मिलना चाहिए

भ्रष्ट तंत्र भ्रष्टाचार, भ्रष्ट ही सबके विचार
हर एक जन अब इसके, खिलाफ मिलना चाहिए

भड़काए नफरत के शोले, सरजमीं पर तुमने बहुत
जर्रा –जर्रा इसका हमें, आफताब मिलना चाहिए

झूठे वादे झूठे इरादे और नहीं चल पायेंगे
बच्चे बच्चे का पूरा, हर ख्वाब मिलना चाहिए

उखाड़ फैंको तंत्र को, स्वतंत्र हो तुम अगर
लोकतंत्र का हमें अब, पूरा स्वाद मिलना चाहिए।

8. रची बसी भारत की मिट्टी Rma duwedi poem

कोई कहता है हिंदी बेढ़ंगी
कोई कहता है बैरंग चिठ्ठी।
हिंदी तो है हिंद की भाषा,
रची बसी भारत की मिट्टी॥

गैरों को गले लगाना,
प्रीति हमारी है यह कैसी?
अपनों को अपमानित करना,
रीति हमारी है यह कैसी?

अपनी हिंदी अपनाने को,
यह रीति बदलनी ही होगी।
अंग्रेजी के प्रति मोह है जो,
यह सोच बदलनी ही होगी॥

तब ही हम हिंदी से,
हिन्दुस्तान बनायेंगे।
पूर्ण स्वतंत्र होंगे तब ही,
जब सब हिंदी को अपनायेंगे॥

9. कुमार विश्वाश देश भक्ति कविता / Kumar vishvas desh bhakti poem

desh bhakti kavitayen

दौलत ना अता करना मौला, शोहरत ना अता करना मौला
बस इतना अता करना चाहे जन्नत ना अता करना मौला
शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो

बस एक सदा ही सुनें सदा बर्फ़ीली मस्त हवाओं में
बस एक दुआ ही उठे सदा जलते-तपते सेहराओं में
जीते-जी इसका मान रखें
मर कर मर्यादा याद रहे
हम रहें कभी ना रहें मगर
इसकी सज-धज आबाद रहे
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो

गीता का ज्ञान सुने ना सुनें, इस धरती का यशगान सुनें
हम सबद-कीर्तन सुन ना सकें भारत मां का जयगान सुनें
परवरदिगार,मैं तेरे द्वार
पर ले पुकार ये आया हूं
चाहे अज़ान ना सुनें कान
पर जय-जय हिन्दुस्तान सुनें
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो।।

10. कृष्ण की चेतावनी रामधारीसिंह कविता / Krishna ki chetavani Ramdhari singh dinkar poem

देश भक्ति कविता

वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।

मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये।

‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!

दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।

हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।

‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अन्दर।

‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।

‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि जिष्णु, जलपति, धनेश,
शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि दण्डधर लोकपाल।
जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।

‘भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।

‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।

‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
छा जाता चारों ओर मरण।

‘बाँधने मुझे तो आया है,
जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है?

‘हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।

‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
फिर कभी नहीं जैसा होगा।

‘भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का पर, दायी होगा।’

थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े।
केवल दो नर ना अघाते थे,
धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित,
निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’!

इन पॉपुलर पोस्ट को भी अवश्य से पढ़े –

1. Desh bhakti kavitayen

2. Ruk na tu thak na tu

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hindi poem shayad tumko pta nhi

Shayad tumko pta nhi hindi poem मेरे द्वारा रचित एक मोटिवेशनल कविता है। नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है हमारी वेबसाइट inhindistory. com पर

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शायद तुम को पता नही

शायद तुम को पता नही…..

जब युद्ध समरभूमि में होता है….

सिर्फ कायर ही घबराते हैं…..

सूरवीर भिड़ जाते हैं …..

शायद तुमको पता नहीं…😊

जो सदा निराशा में जीते हैं….

वो कायर ही तो होते हैं…..

जो घोर निराशा में भी….

उम्मीदों की कुछ अलग ही अलख जागते हैं…

..वो लोग ही विजेता कहलाते हैं।

शायद तुम को पता नही….

कुछ …लोग जीवन मे आते हैं ..

कुछ लोग जीवन से जाते हैं….

पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं …..☺️

जो दिल मे ही बस जाते हैं…..

शायद तुमको पता नही🥰🥰

to be continue……

for love quotes

Love quotes in hindi

मनुष्य का स्वाभाविक गुण है कि वो प्यार चाहता है। हर एक व्यक्ति चाहता है कि कोई उसे प्यार करे और वो भी किसी को प्यार करे। प्यार कई प्रकार का हो सकता है भाई का अपनी बहन के लिए , बहन का अपने भाई के लिये , माँ का अपने बच्चों के लिए, lovers का एक दूसरे के लिए आदि। प्यार love के बिना मानव जीवन व्यर्थ है , रंगहीन और निरही है। कहा भी जाता है कि मुहोब्बत ही खुदा की सच्ची इबादत है। ये प्रसिद्ध दोहा तो सभी ने पढ़ा ही होगा :-
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ , पंडित भया न कोई।
ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय।।

बेस्ट प्रेरणादायी मंजिल हिंदी कविता | Ruk na Tu Thak na Tu hindi poem

बेस्ट प्रेरणादायी मंजिल हिंदी कविता | Ruk na Tu Thak na Tu hindi poem

आज हम आपके लिए एक बहुत ही motivational hindi poetry लेकर आये है उम्मीद है आप लोगो को बेहद पसंद आएगी। यह hindi poem आपको अपने लक्ष्य प्राप्त करने हेतु motivate करेगी।

 

Ruk na Tu Thak na Tu

रुक न तु थक न तु | Ruk na Tu Thak na Tu

 

 रुक न तु , थक न तु  तेरे नाम का भी शोर होगा।

तुझ को भी मिलेगी मंजिल , तेरा भी एक दौर होगा।।

 

अपनी हार से स्वयं को यूँ ही न हताश कर ,

फिर हो जा उठ खड़ा फिर युद्ध का आगाज कर।

 

जीत हार की छोड़  परवाह ,

स्वयं पर तु विश्वास कर ,

 

चीर निराशाओं के घोर अंधेरे ,

उम्मीदों का भोर होगा।

               

 रुक न तु , थक न तु  तेरे नाम का भी शोर होगा।

तुझ को भी मिलेगी मंजिल , तेरा भी एक दौर होगा।।

 

युद्ध ही तेरा धर्म है ,

लड़ना ही तेरा कर्म है

 

इस जीवन युद्ध मे न कभी तेरी हार होगी

या सीख होगी या जीत होगी ।

 

त्याग अपने डर को तुझे लड़ना होगा ,

कभी गिरना होगा तो कभी उठना होगा।।

 

चीर निराशाओं के घोर अंधेरे ,

उम्मीदों का भोर होगा।

 

रुक न तु , थक न तु  तेरे नाम का भी शोर होगा।

तुझ को भी मिलेगी मंजिल , तेरा भी एक दौर होगा।।

 


 

               ये हिंदी कविता tujhe bhi milegi manjil आप लोगो को पसंद आयी होतो पोस्ट को शेयर जरूर करें। यदि आपके पास भी ऐसी कोई hindi poem हो तो हमे send कर सकते हैं। हम आपकी पोस्ट को आपके नाम के साथ पोस्ट करेंगे। हमारी ईमेल id है [email protected]

धन्यवाद

 

 

 

101 hindi best quotes status | hindi best quotes

नमस्कार दोस्तों आज हम आपके लिए hindi best quotes लेकर आये हैं। ये hindi best quotes for life आपके जीवन मे सकारात्मक दृष्टिकोण को विकसित करने में हेल्प करेंगे। इन quotest को आप watsapp और facebook पर अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं।

 

101 hindi best quotes -:

 

Nice line – गरीब मीलों चलता है

भोजन पाने के लिए,

अमीर मीलों चलता है,

 उसे पचाने के लिए,

किसी के पास खाने के लिए

एक वक्त की रोटी नहीं,

किसी के पास एक रोटी

खाने के लिए वक्त नहीं।

कोई अपनो के लिए,

अपनी रोटी छोड़ देता है।

 

कोई रोटी के लिए

अपनो को छोड़ देता है

दौलत के लिए

सेहत खो देता है

सेहत पाने के लिए

 दौलत खो देता है।

जीता ऐसे है जैसे कभी मरेगा नहीं,

और मर ऐसे जाता है जैसे कभी जीया ही नहीं।

एक मिनट में ज़िन्दगी नहीं बदलती

एक मिनट में लिया गया फैसला, जिन्दगी बदल देता है।

 

 

Hindi best quotes for life -:

 

 

 

 

1.  स्वयं को कभी कमजोर साबित

मत होने दें क्योंकि..

डूबते सूरज को देखकर लोग

– घरों के दरवाजे बंद करने लगते हैं !

 

Hindi whatsapp status

 

 

 
2. मुझे जिंदगी का तजुर्बा तो
नहीं पर इतना मालूम है,
छोटा इंसान बडे मौके पर
काम आ सकता है।
 
3. न तेरी शान कम होती,
न रुतबा घटा होता ..
जो गुस्से में कहा,
वही हंस के कहा होता ..
 
4. हमारी हैसियत का अंदाजा …
तुम ये जान के लगा लो,
हम कभी उनके नहीं होते
जो हर किसी के हो जाएं …
 
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5. कुछ लोग खुद को शेर समझते है,
मगर हम वो इन्सान है,
जो शेरों को भी कुत्ते जैसा घुमाते है
 
6.बात उन्ही कि होती है
जिनमे
कोई बात 
होती है।
 
7. शाखों से टूट जाये।
वोपत्ते नहीं है हम,
डन आधीयों से कहीं दो जरा
अपनी औकात मे रहे
 
 
Whatsapp status

 

 
 
8. हथियार तो शौक के लिये रखते है
खौफ़ के लिये तो नाम हि काफ़ी है
 
9.औकात की बात न करो जिस दिन हम अपनी औकात पर आ गए न तो तुम अपनी औकात भूल जाओगे।
 
10. कुछ जल्दी ही मिल जाये तो क्या मजा
      मजा तो बेसब्री से इंतजार करने में है।
 
11. आँखों में  न देखो हमारी …ऐसे 
      कसम से तुमको भी हमसे इश्क हो जायेगा।
 
13. स्वयं को कभी कमजोर साबित
मत होने दें क्योंकि..
डूबते सूरज को देखकर लोग
– घरों के दरवाजे बंद करने लगते हैं !
 
14. जिंदगी बड़ी अजीब होती है,
कभी हार तो कभी जीत होती है.
तमन्ना रखो समंदर की गहेरइ को
छुने की,
किनारो पे तो बस जिंदगी की
शुरुआत होती है..
 
15. मैं वो खेल नही खेलता जिसमे जीतना फिक्स हो
क्यूँ की-जीतने का मज़ा तभी है, जब हारने का रिस्क हो..
 
 
Whatsapp attitude status

 

 
 
16. हर दिन अपनी जिन्दगी को
एक नया ख्वाब दो,
चाहे पुरा ना हो
पर आवाज तो दो
एक दिन पूरे हो जायेगा
सारे ख्वाब तुम्हारे
सिर्फ एक शुरुआत तो दो।
 
17. रख हौसला वो मंजर भी आयेगा,
प्यासे के पास चलकर
समंदर भी आयेगा।
थक कर न बैठ ये मंजिल के मुशाफिर
मंजिल भी मिलेगी.
और मिलने का मजा भी आयेगा।
 
18. शाम सूरज को ढलना सिखाती है.
शमा परवाने को जलना सिखाती है.
गिरने वालो को तकलीफ़ तो होती है.
पर
ठोकर ही इंसान को चलना सिखाती है।
 
19. ऐ वक्त
तू कितना भी सताले हमें
लेकिन याद रख…
किसी दिन हम तुझे
बदलने पर मजबूर कर देंगे।
 
20. क्या खुब कहा है दोस्ती के लिए…….
“तू गलतीसे भी कन्धा न देना
मेरे जनाजे को एदोस्त ….
कही फिर जिन्दा न हो जाऊ
तेरा सहारा देखकर…”
 
Friends whatsapp status

 

 
 
21. नदी में पानी मीठा रहता है
क्योंकि वो देती रहती है,
सागर का पानी खारा रहता है
क्योंकि वो लेता रहता है,
नाले का पानी दुर्गन्ध पैदा करता है
क्योंकि वो रुका रहता है..!
अपना जीवन भी वैसा ही है,
देते रहेंगे तो मीठे लगेंगे
लेते रहेंगे तोखारे लगेंगे
रुके रहेंगे तो बेचारे लगेंगे..!
 
22. “तुम्हारे दिल की चुभन
भी ज़रूर कम होगी,
किसी के पाँव से काँटा
निकाल कर देखो.”
 
23. फिर उड़ गयी नींद
ये सोच कर…!!!
सरहद पर बहा वो खून
मेरी नींद के लिए था…!!!
 
24. आप जो करने से डरते हैं उसे करिए
और करते रहिये अपने डर पर विजय
पाने का यही सबसे पक्का और तेज
तरीका हैं जो आज तक खोजा गया हैं.
 
25. हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली
कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली,
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।
 
26. लोग शायद ही कभी
सफल होते हैं जब
तक कि जो वो कर रहे
हैं उसमें आनंद ना लें.
 
27. शानदार बात
जीवन में “तकलीफ़” उसी को
आती है, जो हमेशा “जिम्मेदारी”
उठाने को तैयार रहते है,
और जिम्मेदारी लेने वाले कभी
हारते नही, या तो “जीतते” है, या
फिर “सीखते” है.।
 
28. वक्त की एक सचाई यह भी है
कि-
एक बाप चार बच्चो को पाल सकता है
मगर चार बच्चे मिलकर
एक बापको नही पाल सकते
 
Father day whatsapp status

 

 
 
29. ना जाने क्यों वो हमसे मुस्कुरा के मिलते हैं,
अन्दर के सारे गमछुपा के मिलते हैं,
जानते हैं आँखे सच बोल जाती हैं,
शायद इसी लिए वो
नज़र झुका के मिलतें हैं.
 
30. ऐ ज़िन्दगी तेरे जज़्बे
को सलाम!!
पता है कि मंज़िल
मौत है….
फिर भी दौड़ रही है ….!!!!
 
31.दिल दुखाने की आदत नहीं हैं हमारी,
हम तो सदा प्यार से पेश आते हैं..
अंदाज तो आप के बदले बदले हैं,
बीना बात किये ही चले जाते हैं…
 
32. “,
बस यही दो मसले,
ज़िन्दगी भर ना हल हुए,
ना नींद पूरी हुई, ना
ख्वाब मुकम्मल हुए,
वक़्त ने कहा,
काश थोड़ा और सब्र होता,
सब्र ने कहा,
काश थोड़ा 
“वक़्त होता”
 
33. रिश्तों की खुबसूरती
एक-दूसरे की बात
बर्दाश्त करने में है.
खुद जैसा इंसान
तलाश करोगे तो
अकेले रह जाओगे..
 
34. “ज़िन्दगी में खुद को कभी
किसी इंसान का आदी
मत बनाना..
…क्यूंकि इंसान बहुत
खुदगर्ज है..
जब आपकी पसंद करता
है
आपकी बुराई भूल जाता
है.
और जब आपसे नफरत
करता है
तो आपकी अच्छाई भूल
जाता है
 
35. मुझे किसी को मतलबी
कहने का कोई हक़ नहीं,
मैं तो खुद अपने रब को
मुसीबतों में याद करता हूँ,, 
 
 
36. – इंतज़ार करने वालो को सिर्फ उतना ही मिलता
है, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते है।
ऐपीजे अब्दुल कलाम
 
37. दुनिया में दो ‘पौधे’ ऐसे हैं
जो कभी मुरझाते नहीं और
अगर जो मुरझा गए तो उसका
कोई इलाज नहीं।
पहला- *’नि:स्वार्थ प्रेम’*
और दूसरा – * अटूट विश्वास’
 
38. “इच्छा पूरी नही होती है
तो क्रोध बढ़ता है
और इच्छा पूरी होती है
तो लोभ बढ़ता है
इसलिए जीवन की हर तरह कि
स्थिति में धैर्य बनाये रखना ही
श्रेष्ठता है।
 
39. चिराग से ना पूछो बाकी तेल
कितना है
साँसों से ना पूछो बाकी खेल
कितना है
पूछो.उस कफन में लिपटे मुर्दे
जिंदगी में गम और
कफन में चैन कितना है
 
40. फ़िलहाल
मासूम सी हँसी,बेवजह ही कभी,होठों पे खिल जाती है
अंजान सी खुशी,बहती हुई कभी,साहील पे मिल जाती है
ये अंजानासा डर,अजनबी हैं मगर खूबसूरत है जी लेने दे,
ये लम्हा फिलहाल जी लेने दे…
गुलज़ार साहब
 
41. मैं फकीरों से भी सौदा करता हूँ!
अक्सर, वह एक रुपये में लास दुआएं देता है।
 
 
42. जो लोग
अच्छे होते
हैदिमाग
वाले अक्सर
उनका जम
करफायदा
उठाते है
 
43. आहिस्ता चल
ए जिंदगी,
कुछ कर्ज चुकाने
बाकी हैं,
कुछ के दर्द
मिटाने बाकी है,
कुछ फर्ज निभाने
बाकी है।।
 
44.पैर की मोच और छोटी सोच,
हमें आगे बढ़ने नहीं देती
टुटी कलम और औरो से जलन,
खुद का भाग्य लिखने नहीं देती।
काम का आलस और पैसो का लालच,
हमें महान बनने नहीं देता।
अपना मजहब उंचा और गैरो का ओछा,
ये सोच हमें इन्सान बनने नहीं देती
 
45. ठोकरें खा कर भी ना संभले
तो मुसाफ़िर का नसीब;
वरना पत्थरों ने तो अपना फर्ज़
निभा ही दीया।
 
46. ” अच्छी किताबें
और सच्चे दोस्त
तुरंत समझ में नहीं आते।”
 
47. दुर्योधन ने श्री कृष्ण की पूरी
नारायणी सेना मांग ली थी।
और अर्जुन ने केवल श्री कृष्ण
को मांगा था।उस समय
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन की
चुटकी (मजाक)
लेते हुए कहा:-
हार निश्चित हैं तेरी, हर दम
रहेगा उदास |माखन दुर्योधन
ले गया, केवल छाछ बची
तेरे पास ।अर्जुन ने कहा :-
हे प्रभु जीत निश्चित हैं मेरी,
दास हो नहीं सकता उदास ।
माखन लेकर क्या करूँ,
जब माखन चोर हैं मेरे पास ।
jay shree krishna
 
48. बहुत ही सुन्दर वर्णन है.
मस्तक को थोड़ा झुकाकर देखिए…..
अभिमान मर जाएगा
आँखें को थोड़ा भिगा कर देखिए…..
पत्थर दिल पिघल जाएगा
दांतों को आराम देकर देखिए…..
स्वास्थ्य सुधर जाएगा साल
जिव्हा पर विराम लगा कर देखिए…..
क्लेश का कारवाँ गुज़र जाएगा
इच्छाओं को थोड़ा घटाकर देखिए…..
खुशियों का संसार नज़र आएगा.
 
49. प्रहलाद जैसा
विश्वास हो
भीलनी जैसी
आस हो
द्रोपदी जैसी
पुकार हो
मीरा जैसा
इंतजार हो
तो कृष्ण को
आना ही
पड़ता है
 
 
50. न “मॉग” कुछ “जमाने” से
‘ये” देकर “फिर” “सुनाते” हैं
“किया” “एहसान” “जो” एक
“बार”
वो “लाख” बार “जताते” “है”
“है” “जिनके” पास “कुछ”
“दौलत”
“समझते” हैं “भगवान” हैं
“हम”
“ऐ” “बन्दे” तू “मॉग”
“अपने””ईश्वर” से
“जहाँ” मॉगने “वो” भी
“जाते” है..
 
51. प्रहलाद जैसा
विश्वास हो
भीलनी जैसी
आस हो
द्रोपदी जैसी
पुकार हो
मीरा जैसा
इंतजार हो
तो कृष्ण को
आना ही
पड़ता है
 
52. फिर से मुझे मिट्टी में
खेलने दे ऐ ज़िंदगी
ये साफ सुथरी ज़िंदगी
मिट्टी से ज़्यादा
गंदी नज़र आती है।
 
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53.हजारो में मुझे
सिर्फ एक
वो शख्स चाहिए
जो मेरी गैर मौजूदगी में
मेरी बुराई
न सुन सके
 
54. पूरी दुनिया की सबसे खुबसूरत
जोड़ी कौनसी है?
‘मुस्कराहट और आंसू
इन दोनों का एक साथ मिलना
मुश्किल है,
लेकिन जब ये दोनों मिलते है वो पल
सबसे खुबसूरत होता है।
 
55. जीत की ख़ातिर बस जूनून चाहिए,
जिसमे उबाल हो ऐसा खून चाहिए,
ये आसमा भी आएगा जमी पर,
बस इरादों में जीत की गूंज चाहिए..!!
 
56. हमें जमीर बेचना..  आया ही नहीं वरना,
दौलत कमाना इतना..भी मुश्किल नहीं।
 
57. जिन्दगी हर हाल में ढ़लती है,
जेसे रेत मुट्ठी से फिसलती है,
गिले शिकवे कितने भी हों,
हर हाल में हसते रेहना क्योंकि..
जिन्दगी ठोकरों से ही संभलती है।
 
58. शायद फिर वो तक़दीर
मिल जाये ,जीवन के वो
हसीं पल मिल जाएँ,
चल फिर से बैठे वो क्लास कि
लास्ट बैंच पे, शायद फिर से वो
पुराने दोस्त मिल जाएँ
 
59. यूँ ही नहीं मिलती राही को मंजिल,
एक जुनून सा दिल में जगाना होता है,
पूँछा चिड़िया से कैसे बना आशियाना
बोली-
भरनी पड़ती है उडान बार-बार
तिनका तिनका उठाना होता है,
 
60. तूफान में ताश का घर नहीं बनता
रोजे से बिगड़ा मुकद्दर नहीं बनता
दुनिया को जीतने का हौसला रखो
एक हार से कोई फ़क़ीर और एक
जीत से कोई सिकंदर नहीं बनता।
 
61. तमन्ना ने जिंदगी के
आँचल में सिर रख कर पूछा
“मैं कब पूरी होउंगी”
जिंदगी ने हँसकर जवाब दिया
“जो पूरी हो जाये वो तमन्ना ही क्या…
 
62. अपनी तो ज़िन्दगी अजीब कहानी है
जिस चीज़ को चाहा वो ही बेगानी है
हँसते भी
तो दुनिया को हँसाने के लिए
वरना दुनिया डूब जाये
इन आखों में इतना पानी है….
 
63. सिखा ना सकी जो उम्र भर
तमाम किताबें मुझे,
फिर करीब से कुछ चेहरे पढ़ें
और ना जाने कितने सबक
सीख लिए
 
64. कल न हम होगे न कोई गिला होगा
सिफ सिमटी हुई यादों का सिलसिला होगा
जो लम्हे है, चलो हंस कर बिता ले.
जाने कल जिदगी का क्या फैसला होगा
 
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65.जिंदगी उसी को अजमाती है, जो हर मोड़ पर चलना
जानते हैं, कुछ पाकर तो हर कोई खुश रहता है, पर
जिंदगी उसी की है जो सबकुछ खोकर भी मुस्कुराना
जानते है…
 
66. जिंदगी में कभी उदास मत होना
कभी किसी बात पर निराश मत होना!
जिंदगी संघर्ष हैं चलती रहेगी
कभी अपने जीने का अंदाज मत खोना!
 
67. जिन्दगी मे शांति से जीने के
2 ही तरीके है।
1.माफ कर दो उनको जिनको
तुम भुल नहीं सकते।
2 भुल जाओ उनको
जिनको तूम माफ
नहीं कर सकते
 
68. मैंने जिन्दगी से
पूँछा कि “तू इतनी
कठिन क्यों है”
जिन्दगी ने हँसकर कहा
क्योंकि दुनिया
आसान चीजों की
कद्र नहीं करती
 
69.उदास लम्हो की ना कोई याद रखना
तूफान में भी वजूद अपना संभाल कर रखना
किसी की जिंदगी की खुशी हो तुम
यही सोच कर तुम अपना ख्याल रखना!
 
70.इस जमाने में किसी से भी
वफा की उम्मीद ना करो मेरे
दोस्तों, क्योंकि वो वक्त
कुछ और ही था जब मकान
कच्चे मगर लोग सच्चे हुआ
करते थे।
 
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71.अजब मुकाम पे ठहरा हुआ है काफिला जिंदगी का
सकून टूढनें चले थे, नींद ही गवा बैठे।
 
72. बहुत कुछ सिखाया
जिन्दगी के सफ़र
अनजाने ने, वो किताबों
में दर्ज था ही नहीं जो
पढ़ाया सबक ज़माने ने!
 
73. स्कूल का वो बैग
फिर से थमा दे माँ..
यह जिंदगी का बोझ
उठाना मुश्किल है…
 
74. “माचिस की ज़रूरत
यहाँ नहीं पड़ती
यहाँ आदमी
आदमी से जलता है”
 
75. जो हो गया उसे सोचा नही करते
जो मिल गया उसे खोया नहीं करते
हांसिल उन्हें होती है सफलता जो
वक्त और हालात पर रोया नहीं करते
 
76. जीवन में सिर्फ
जीना ही मायने
नहीं रखता
बल्कि सच्चाई के साथ
जीना ज्यादा
मायने रखता है
 
78. गान अर्पित, प्राण अर्पित
रक्त का कण-कण
समर्पित
चाहता है देश की धरती
तुझे कुछ और भी दूं
 
79. कड़वा सच
अगर.आपकी वजह से
किसी की जिन्दगी में
कोई तकलीफ़ आए तो
उसकी ज़िन्दगी से ऐसे
निकल जाना चाहिए
जैसे कभी उसकी
ज़िन्दगी में आए ही नहीं
 
80. .ऐसा छात्र जो प्रशन पूछता है
वह पांच मिनिट
के लिए मुर्ख रहता है
लेकिन जो पूछना ही नहीं वह
जिंदगी भर मुर्ख रहता है
 
81. करीब इतना रही कि रिश्ते में
प्यार रहे
दूर भी इतना रहो कि
आने का इंतजार रहे
रखो उम्मीद रिश्तो के दरम्यान
इतनी कि टूट जाये
उम्मीद मगर बरकरार रहें
 
82. जब हम यह सोचते है
कि हम सब कुछ जानते है
तो हम अपने अंदर कि
जीवन को नए
सिरे से देखने कि इच्छा
को खो देते है
 
83. निंदा उसी कि होती है
जी जिन्दा है
मरने के बाद ती
सिर्फ तारीफ़ कि जाती है
 
84. इन्शान हमेशा जिन्दगी में दो
चीजो से हारता है
पहला वक्त और दूसरा प्यार
वक्त कभी किसी का नहीं होता
और प्यार हर किसी से नहीं
किया जा सकता
 
85. कमाल का हौसला दिया
रब ने इंसानों की वाकिफ
हम अगले पल से नहीं
और वादे कर लेते है जन्मों के
 
86. दोस्त….
दोस्त एक ऐसा चोर होता है;
जो आँखों से आँसू, चेहरे से परेशानी,
दिल से मायूसी, जिंदगी से दर्द,
और बस चले तो हाथों की लकीरों
से मौत तक चुरा ले।
 
87. प्रतिभा के बल पर कुर्सी
प्राप्त की जा सकती है,
परंतु कुर्सी के बल पर
प्रतिभा प्राप्त
नहीं की जा सकती!
 
88. हंसकर जीना दस्तूर है जिंदगी का
एक यही किस्सा मशहूर है जिंदगी का
बीते हुए पल कभी लौट कर नहीं आते
यही सबसे बड़ा कसूर है जिंदगी का।
जिंदगी के हर पल को खुशी से बिताओ
रोने का टाइम कहां, सिर्फ मुस्कुराओ
चाहे ये दुनिया कहे पागल आवारा
बस याद रखना जिंदगी ना मिलेगी दोबारा
 
89. बोझ कितना भी हो
लेकिन कभी उफ तक नहीं करता,
किंधा बाप का साहब…
बड़ा मजबूत होता है।
 
90. हर किसी को खुश करना
शायद हमारे वश मे न हो,
लेकिन किसी को हमारी वजह से
दुख ना पहुचे ये तो हमारे वश मे है ।।
 
91. ईश्वर कहते है उदास ना हो “मै ” तेरे साथ हैं…
सामने नही आस पास हूँ….
पलकों को बंद कर और दिल से याद कर…
मै कोई और नही तेरा विश्वास हूँ…!!!
 
92. जितना कठिन संघर्ष होगा
जीत उतनी ही शानदार होगी.
 
93. मेहनत सीढ़ियों की तरह होती है
और भाग्य लिफ्ट की तरह
किसी समय लिफ्ट तो
बंद हो सकती है
पर सीढ़ियां हमेशा उँचाई
की तरफ ले जाती है।
 
94.जीवन में पीछे
देखो,”अनुभव”मिलेगा।
जीवन मे आगे देखो
तो,”आशा”मिलेगी
दायें-बायें देखो तो, “सत्य”मिलेगा
स्वयं के अन्दर देखो तो परमात्मा”
और आत्मविश्वास मिलेगा
 
95. नदी जब रास्ता छोड देती है.
राह में चट्टान तक तोड देती है.
कुछ करने की ठान लीजीये अगर.
तो जिंदगी हर रास्ते को मोड देती है
 
96. यूँ तो
पत्थरकिभी
तक़दीर
बदलशकती है,
शर्त
ये है कि
 
उसे
दिलसे तराशा जाये…
 
97. कामयाब व्यक्ति की
सिर्फ चमक लोगों
को दिखाई देती है।
उसने कितने अंधेरे देखे,
यह कोई नहीं जानता है.
 
98. अपनी गलतियों से
तक़दीर को बदनाम मत
करो….
क्योंकि तक़दीर तो खुद
हिम्मत की मोहताज
होती है…
 
99. जीत निश्चित हो तो,
कायर भी लड़ सकते हैं,
बहादुर वे कहलाते हैं,
जो हार निश्चित
हो फिर भी मैदान नहीं छोड़ते…
 
100.जो पत्थर आपकी मजिल के रास्ते में
बाधाडालता हो! और
आपको उसी पत्थर को मजिल की सीडी
बनाना आजाए तो वो ही पत्थर आपको
आपकी मंजिल तक पहुंचा देगा!
 
 
101. कठिनाइंया जब आती है तो कष्ट देती है,
पर जब जाती है तो, आत्मबल का ऐसा
उत्तम पुरष्कार दे जाती हैं जो उन कष्टो
और दुःखो की तुलना में हजार गुना
ज्यादा मूल्यवान होती है।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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प्रायश्चित/best praschit hindi story

 नमस्कार दोस्तो आज हम best praschit hindi story भागवतीचरण वर्मा की की कहानी आपके साथ शेयर कर रहे हैं ।

 

अगर कबरी बिल्‍ली घर-भर में किसी से प्रेम करती थी, तो रामू की बहू से, और अगर रामू की बहू घर-भर में किसी से घृणा करती थी, तो कबरी बिल्‍ली से। रामू की बहू, दो महीने हुए मायके से प्रथम बार ससुराल आई थी, पति की प्‍यारी और सास की दुलारी, चौदह वर्ष की बालिका। भंडार-घर की चाभी उसकी करधनी में लटकने लगी, नौकरों पर उसका हुक्‍म चलने लगा, और रामू की बहू घर में सब कुछ। सासजी ने माला ली और पूजा-पाठ में मन लगाया।

 

Hindi story



 

लेकिन ठहरी चौदह वर्ष की बालिका, कभी भंडार-घर खुला है, तो कभी भंडार-घर में बैठे-बैठे सो गई। कबरी बिल्‍ली को मौका मिला, घी-दूध पर अब वह जुट गई। रामू की बहू की जान आफत में और कबरी बिल्‍ली के छक्‍के पंजे। रामू की बहू हाँडी में घी रखते-रखते ऊँघ गई और बचा हुआ घी कबरी के पेट में। रामू की बहू दूध ढककर मिसरानी को जिंस देने गई और दूध नदारद। अगर बात यहीं तक रह जाती, तो भी बुरा न था, कबरी रामू की बहू से कुछ ऐसा परच गई थी कि रामू की बहू के लिए खाना-पीना दुश्‍वार। रामू की बहू के कमरे में रबड़ी से भरी कटोरी पहुँची और रामू जब आए तब तक कटोरी साफ चटी हुई। बाजार से बालाई आई और जब तक रामू की बहू ने पान लगाया बालाई गायब।

रामू की बहू ने तय कर लिया कि या तो वही घर में रहेगी या फिर कबरी बिल्‍ली ही। मोर्चाबंदी हो गई, और दोनों सतर्क। बिल्‍ली फँसाने का कठघरा आया, उसमें दूध मलाई, चूहे, और भी बिल्‍ली को स्‍वादिष्‍ट लगनेवाले विविध प्रकार के व्‍यंजन रखे गए, लेकिन बिल्‍ली ने उधर निगाह तक न डाली। इधर कबरी ने सरगर्मी दिखलाई। अभी तक तो वह रामू की बहू से डरती थी; पर अब वह साथ लग गई, लेकिन इतने फासिले पर कि रामू की बहू उस पर हाथ न लगा सके।

कबरी के हौसले बढ़ जाने से रामू की बहू को घर में रहना मुश्किल हो गया। उसे मिलती थीं सास की मीठी झिड़कियाँ और पतिदेव को मिलता था रूखा-सूखा भोजन।

एक दिन रामू की बहू ने रामू के लिए खीर बनाई। पिस्‍ता, बादाम, मखाने और तरह-तरह के मेवे दूध में औटाए गए, सोने का वर्क चिपकाया गया और खीर से भरकर कटोरा कमरे के एक ऐसे ऊँचे ताक पर रखा गया, जहाँ बिल्‍ली न पहुँच सके। रामू की बहू इसके बाद पान लगाने में लग गई।

उधर बिल्‍ली कमरे में आई, ताक के नीचे खड़े होकर उसने ऊपर कटोरे की ओर देखा, सूँघा, माल अच्‍छा है, ता‍क की ऊँचाई अंदाजी। उधर रामू की बहू पान लगा रही है। पान लगाकर रामू की बहू सासजी को पान देने चली गई और कबरी ने छलाँग मारी, पंजा कटोरे में लगा और कटोरा झनझनाहट की आवाज के साथ फर्श पर।

आवाज रामू की बहू के कान में पहुँची, सास के सामने पान फेंककर वह दौड़ी, क्‍या देखती है कि फूल का कटोरा टुकड़े-टुकड़े, खीर फर्श पर और बिल्‍ली डटकर खीर उड़ा ही है। रामू की बहू को देखते ही कबरी चंपत।

रामू की बहू पर खून सवार हो गया, न रहे बाँस, न बजे बाँसुरी, रामू की बहू ने कबरी की हत्‍या पर कमर कस ली। रात-भर उसे नींद न आई, किस दाँव से कबरी पर वार किया जाए कि फिर जिंदा न बचे, यही पड़े-पड़े सोचती रही। सुबह हुई और वह देखती है कि क‍बरी देहरी पर बैठी बड़े प्रेम से उसे देख रही है।

रामू की बहू ने कुछ सोचा, इसके बाद मुस्‍कुराती हुई वह उठी। कबरी रामू की बहू के उठते ही खिसक गई। रामू की बहू एक कटोरा दूध कमरे के दवाजे की देहरी पर रखकर चली गई। हाथ में पाटा लेकर वह लौटी तो देखती है कि कबरी दूध पर जुटी हुई है। मौका हाथ में आ गया, सारा बल लगाकर पाटा उसने बिल्‍ली पर पटक दिया। कबरी न हिली, न डुली, न चीखी, न चिल्‍लाई, बस एकदम उलट गई।

आवाज जो हुई तो महरी झाड़ू छोड़कर, मिसरानी रसोई छोड़कर और सास पूजा छोड़कर घटनास्‍थल पर उपस्थित हो गईं। रामू की बहू सर झुकाए हुए अपराधिनी की भाँति बातें सुन रही है।

महरी बोली – “अरे राम! बिल्‍ली तो मर गई, माँजी, बिल्‍ली की हत्‍या बहू से हो गई, यह तो बुरा हुआ।”

मिसरानी बोली – “माँजी, बिल्‍ली की हत्‍या और आदमी की हत्‍या बराबर है, हम तो रसोई न बनावेंगी, जब तक बहू के सिर हत्‍या रहेगी।”

सासजी बोलीं – “हाँ, ठीक तो कहती हो, अब जब तक बहू के सर से हत्‍या न उतर जाए, तब तक न कोई पानी पी सकता है, न खाना खा सकता है। बहू, यह क्‍या कर डाला?”

महरी ने कहा – “फिर क्‍या हो, कहो तो पंडितजी को बुलाय लाई।”

सास की जान-में-जान आई – “अरे हाँ, जल्‍दी दौड़ के पंडितजी को बुला लो।”

बिल्‍ली की हत्‍या की खबर बिजली की तरह पड़ोस में फैल गई – पड़ोस की औरतों का रामू के घर ताँता बँध गया। चारों तरफ से प्रश्‍नों की बौछार और रामू की बहू सिर झुकाए बैठी।

पंडित परमसुख को जब यह खबर मिली, उस समय वे पूजा कर रहे थे। खबर पाते ही वे उठ पड़े – पंडिताइन से मुस्‍कुराते हुए बोले – “भोजन न बनाना, लाला घासीराम की पतोहू ने बिल्‍ली मार डाली, प्रायश्चित होगा, पकवानों पर हाथ लगेगा।”

पंडित परमसुख चौबे छोटे और मोटे से आदमी थे। लंबाई चार फीट दस इंच और तोंद का घेरा अट्ठावन इंच। चेहरा गोल-मटोल, मूँछ बड़ी-बड़ी, रंग गोरा, चोटी कमर तक पहुँचती हुई।

कहा जाता है कि मथुरा में जब पंसेरी खुराकवाले पंडितों को ढूँढ़ा जाता था, तो पंडित परमसुखजी को उस लिस्‍ट में प्रथम स्‍थान दिया जाता था।

पंडित परमसुख पहुँचे और कोरम पूरा हुआ। पंचायत बैठी – सासजी, मिसरानी, किसनू की माँ, छन्‍नू की दादी और पंडित परमसुख। बाकी स्त्रियाँ बहू से सहानुभूति प्रकट कर रही थीं।

किसनू की माँ ने कहा – “पंडितजी, बिल्‍ली की हत्‍या करने से कौन नरक मिलता है?” 

पंडित परमसुख ने पत्रा देखते हुए कहा – “बिल्‍ली की हत्‍या अकेले से तो नरक का नाम नहीं बतलाया जा सकता, वह महूरत भी मालूम हो, जब बिल्‍ली की हत्‍या हुई, तब नरक का पता लग सकता है।”

“यही कोई सात बजे सुबह” – मिसरानीजी ने कहा।

पंडित परमसुख ने पत्रे के पन्‍ने उलटे, अक्षरों पर उँगलियाँ चलाईं, माथे पर हाथ लगाया और कुछ सोचा। चेहरे पर धुँधलापन आया, माथे पर बल पड़े, नाक कुछ सिकुड़ी और स्‍वर गंभीर हो गया – “हरे कृष्‍ण! हे कृष्‍ण! बड़ा बुरा हुआ, प्रातःकाल ब्रह्म-मुहूर्त में बिल्‍ली की हत्‍या! घोर कुंभीपाक नरक का विधान है! रामू की माँ, यह तो बड़ा बुरा हुआ।”

रामू की माँ की आँखों में आँसू आ गए – “तो फिर पंडितजी, अब क्‍या होगा, आप ही बतलाएँ!”

पंडित परमसुख मुस्‍कुराए – “रामू की माँ, चिंता की कौन सी बात है, हम पुरोहित फिर कौन दिन के लिए हैं? शास्‍त्रों में प्रायश्चित का विधान है, सो प्रायश्चित से सब कुछ ठीक हो जाएगा।”

रामू की माँ ने कहा – पंडितजी, इसीलिए तो आपको बुलवाया था, अब आगे बतलाओ कि क्‍या किया जाए!”

“किया क्‍या जाए, यही एक सोने की बिल्‍ली बनवाकर बहू से दान करवा दी जाय। जब तक बिल्‍ली न दे दी जाएगी, तब तक तो घर अपवित्र रहेगा। बिल्‍ली दान देने के बाद इक्‍कीस दिन का पाठ हो जाए।”

छन्‍नू की दादी बोली – “हाँ और क्‍या, पंडितजी ठीक तो कहते हैं, बिल्‍ली अभी दान दे दी जाय और पाठ फिर हो जाय।”

रामू की माँ ने कहा – “तो पंडितजी, कितने तोले की बिल्‍ली बनवाई जाए?”

पंडित परमसुख मुस्‍कुराए, अपनी तोंद पर हाथ फेरते हुए उन्‍होंने कहा – “बिल्‍ली कितने तोले की बनवाई जाए? अरे रामू की माँ, शास्‍त्रों में तो लिखा है कि बिल्‍ली के वजन-भर सोने की बिल्‍ली बनवाई जाय; लेकिन अब कलियुग आ गया है, धर्म-कर्म का नाश हो गया है, श्रद्धा नहीं रही। सो रामू की माँ, बिल्‍ली के तौल-भर की बिल्‍ली तो क्‍या बनेगी, क्‍योंकि बिल्‍ली बीस-इक्‍कीस सेर से कम की क्‍या होगी। हाँ, कम-से-कम इक्‍कीस तोले की बिल्‍ली बनवा के दान करवा दो, और आगे तो अपनी-अपनी श्रद्धा!”

रामू की माँ ने आँखें फाड़कर पंडित परमसुख को देखा – “अरे बाप रे, इक्‍कीस तोला सोना! पंडितजी यह तो बहुत है, तोला-भर की बिल्‍ली से काम न निकलेगा?”

पंडित परमसुख हँस पड़े – “रामू की माँ! एक तोला सोने की बिल्‍ली! अरे रुपया का लोभ बहू से बढ़ गया? बहू के सिर बड़ा पाप है, इसमें इतना लोभ ठीक नहीं!”

मोल-तोल शुरू हुआ और मामला ग्‍यारह तोले की बिल्‍ली पर ठीक हो गया।

इसके बाद पूजा-पाठ की बात आई। पंडित परमसुख ने कहा – “उसमें क्‍या मुश्किल है, हम लोग किस दिन के लिए हैं, रामू की माँ, मैं पाठ कर दिया करुँगा, पूजा की सामग्री आप हमारे घर भिजवा देना।”

“पूजा का सामान कितना लगेगा?”

“अरे, कम-से-कम में हम पूजा कर देंगे, दान के लिए करीब दस मन गेहूँ, एक मन चावल, एक मन दाल, मन-भर तिल, पाँच मन जौ और पाँच मन चना, चार पसेरी घी और मन-भर नमक भी लगेगा। बस, इतने से काम चल जाएगा।”

“अरे बाप रे, इतना सामान! पंडितजी इसमें तो सौ-डेढ़ सौ रुपया खर्च हो जाएगा” – रामू की माँ ने रुआँसी होकर कहा।

“फिर इससे कम में तो काम न चलेगा। बिल्‍ली की हत्‍या कितना बड़ा पाप है, रामू की माँ! खर्च को देखते वक्‍त पहले बहू के पाप को तो देख लो! यह तो प्रायश्चित है, कोई हँसी-खेल थोड़े ही है – और जैसी जिसकी मरजादा! प्रायश्चित में उसे वैसा खर्च भी करना पड़ता है। आप लोग कोई ऐसे-वैसे थोड़े हैं, अरे सौ-डेढ़ सौ रुपया आप लोगों के हाथ का मैल है।”

पंडि़त परमसुख की बात से पंच प्रभावित हुए, किसनू की माँ ने कहा – “पंडितजी ठीक तो कहते हैं, बिल्‍ली की हत्‍या कोई ऐसा-वैसा पाप तो है नहीं – बड़े पाप के लिए बड़ा खर्च भी चाहिए।”

छन्‍नू की दादी ने कहा – “और नहीं तो क्‍या, दान-पुन्‍न से ही पाप कटते हैं – दान-पुन्‍न में किफायत ठीक नहीं।”

मिसरानी ने कहा – “और फिर माँजी आप लोग बड़े आदमी ठहरे। इतना खर्च कौन आप लोगों को अखरेगा।”

रामू की माँ ने अपने चारों ओर देखा – सभी पंच पंडितजी के साथ। पंडित परमसुख मुस्‍कुरा रहे थे। उन्‍होंने कहा – “रामू की माँ! एक तरफ तो बहू के लिए कुंभीपाक नरक है और दूसरी तरफ तुम्‍हारे जिम्‍मे थोड़ा-सा खर्चा है। सो उससे मुँह न मोड़ो।”

एक ठंडी साँस लेते हुए रामू की माँ ने कहा – “अब तो जो नाच नचाओगे नाचना ही पड़ेगा।”

पंडित परमसुख जरा कुछ बिगड़कर बोले – “रामू की माँ! यह तो खुशी की बात है – अगर तुम्‍हें यह अखरता है तो न करो, मैं चला” – इतना कहकर पंडितजी ने पोथी-पत्रा बटोरा।

“अरे पंडितजी – रामू की माँ को कुछ नहीं अखरता – बेचारी को कितना दुख है -बिगड़ो न!” – मिसरानी, छन्‍नू की दादी और किसनू की माँ ने एक स्‍वर में कहा।

रामू की माँ ने पंडितजी के पैर पकड़े – और पंडितजी ने अब जमकर आसन जमाया।

“और क्‍या हो?”

“इक्‍कीस दिन के पाठ के इक्‍कीस रुपए और इक्‍कीस दिन तक दोनों बखत पाँच-पाँच ब्राह्मणों को भोजन करवाना पड़ेगा,” कुछ रुककर पंडित परमसुख ने कहा – “सो इसकी चिंता न करो, मैं अकेले दोनों समय भोजन कर लूँगा और मेरे अकेले भोजन करने से पाँच ब्राह्मण के भोजन का फल मिल जाएगा।”

यह तो पंडितजी ठीक कहते हैं, पंडितजी की तोंद तो देखो!” मिसरानी ने मुस्‍कुराते हुए पंडितजी पर व्‍यंग्‍य किया।

“अच्‍छा तो फिर प्रायश्चित का प्रबंध करवाओ, रामू की माँ ग्‍यारह तोला सोना निकालो, मैं उसकी बिल्‍ली बनवा लाऊँ – दो घंटे में मैं बनवाकर लौटूँगा, तब तक सब पूजा का प्रबंध कर रखो – और देखो पूजा के लिए…”

पंडितजी की बात खतम भी न हुई थी कि महरी हाँफती हुई कमरे में घुस आई और सब लोग चौंक उठे। रामू की माँ ने घबराकर कहा – “अरी क्‍या हुआ री?”

महरी ने लड़खड़ाते स्‍वर में कहा – “माँजी, बिल्‍ली तो उठकर भाग गई!”

 

– भगवतीचरण वर्मा

best praschit hindi story भागवतीचरण वर्मा की ये story आपको पसंद आयी हो तो अपने दोस्तों के  साथ watsapp और facebook पर जरूर शेयर करें।

 

 

हरिवंश राय प्रसिद्घ कविता/ harivansh ray poem

नमस्कार दोस्तों आज हम आपके लिए harivansh ray poem बीत गई सो बात गई ले कर आये है। उम्मीद है harvansh ray जी की ये kavita आपको काफी पसंद आएगी।

 

  1. harivansh ray bachchan poem

 

 

Poem harivansh ray bachchan

 

 

जीवन में एक सितारा था

माना वह बेहद प्यारा था

वह डूब गया तो डूब गया

अंबर के आंगन को देखो

कितने इसके तारे टूटे

कितने इसके प्यारे छूटे

जो छूट गए फिर कहाँ मिले

पर बोलो टूटे तारों पर

कब अंबर शोक मनाता है

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम

थे उस पर नित्य निछावर तुम

वह सूख गया तो सूख गया

मधुबन की छाती को देखो

सूखीं कितनी इसकी कलियाँ

मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ

जो मुरझाईं फिर कहाँ खिली

पर बोलो सूखे फूलों पर

कब मधुबन शोर मचाता है

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था

तुमने तन मन दे डाला था

वह टूट गया तो टूट गया

मदिरालय का आँगन देखो

कितने प्याले हिल जाते हैं

गिर मिट्टी में मिल जाते हैं

जो गिरते हैं कब उठते हैं

पर बोलो टूटे प्यालों पर

कब मदिरालय पछताता है

जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए

मधु घट फूटा ही करते हैं

लघु जीवन ले कर आए हैं

प्याले

टूटा

ही करते हैं

फ़िर भी मदिरालय के अन्दर

मधु के घट हैं, मधु प्याले हैं

जो मादकता के मारे हैं

वे मधु लूटा ही करते हैं

वह कच्चा पीने वाला है

जिसकी ममता घट प्यालों पर

जो सच्चे मधु से जला हुआ

कब रोता है चिल्लाता है

जो बीत गई सो बात गई

Prushkar/ moral story in hindi for students

नमस्कार दोस्तो आज हम आपके लिए moral story in hindi for students ले कर आये हैं। उम्मीद है ये moral story आपको काफी पसंद आएगी।

 

एक बार एक राजा अपने राज्य के भ्रमण पर निकला । उसने राज्य की गली गली घूमा  व्यापारियों को व्यापार करते देखा माँ को अपने बच्चों को सँभालते हुए देखा किसानों को खेत में कड़ी मेहनत करते हुए देखा सभी खुशहाल नज़र आ रहे थे। 

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ये सब देखकर राजा कुछ गंभीर मुद्रा में सोचने लगा फिर हल्का सा मुस्कुराया जिससे प्रतीत हुआ कि राजा ने कुछ खास योजना बनायी है। फिर राजा ने अपने सैनिकों को कुछ समझाया और कहा  कि आज रात को इस सड़क के बीचों बीच एक भारी पत्थर रख दें।

अगली सुबह राजा ने फिर उसी जगह पर आ कर देखा की जैसा उसने अपने सैनिकों को कहा था उसी के अनुसार कार्य किया गया है। अब राजा छुपकर अपनी प्रजा की प्रतिक्रिया देखने लगा।

 

कुछ देर में चार लोग उस रास्ते पर आते हुए दिखे जैसे ही उन लोगो ने सड़क की बीच पत्थर देखो तो चारो राज को कोस ने लगे की हमारा राजा हमारे लिए कुछ नही करता सड़क पर बन्द है पर राजा ने अभी तक सड़क पर से इस बड़े पत्थर को नही हटवाया। ऐसी बातें करके वो चले गए। राजा चुपचाप छिपकर उनकी बातें सुनता रहा।

इसी प्रकार जो भी बन्दा वहाँ से निकलता राजा को ही कोसता। ऐसा होते होते शाम हो गयी राजा को अपनी प्रजा की ऐसी प्रतिक्रिया देखकर काफी दुःख हुआ । अब उसकी उम्मीद टूट गयी की कोई बन्दा उस पत्थर को हटायेगा। उसी समय राजा को दूर से एक सब्जी वाला आता हुआ दिखाई दिया। वह सब्जी वाला अधेड़ उम्र का लग रहा था। सर पर सब्जी की टोकरी थी । जैसे ही वह सब्जी वाला उस पत्थर के पास आया और रुक कर उस पत्थर को देखने लगा फिर उसने सड़क के चारो तरफ देखा सड़क सुनसान थी कोई बन्दा नही था। फिर कुछ देर उसने कुछ सोचा और अपने सिर की सब्जी की टोकरी को नीचे रखा और पत्थर को सड़क से हटाने लगा। पत्थर काफी भारी था उसे हटाने के लिए उस व्यक्ति को काफी मेहनत करनी पड़ रही थी पर उसने हार नही मानी और जोर लगाया जिससे पत्थर सड़क से हट गया । पर ये क्या पत्थर के नीचे एक हजार सोने के सिक्के थे और एक पत्र था। जिस पर लिखा था कि जो व्यक्ति इस पत्थर को हटायेगा ये एक हजार सोने के सिक्के उसकी मेहनत का इनाम हैं।

 

Moral of story – जो व्यक्ति मेहनत करता मेहनत करता है उसे उसका फल जरूर मिलता है। कोई आपकी problem solve करेगा उसका इतंजार न कर अपनी problem स्वयं हल करें।

विलासी कहानी / sharatchand story

 नमस्कार दोस्तों आज हम आपके लिए sharatchand story विलाशी ले कर आये है। sharatchand जी की ये famous story आपको काफी पसंद आएगी।

पक्का दो कोस रास्ता पैदल चलकर स्कूल में पढ़ने जाया करता हूँ। मैं अकेला नहीं हूँ, दस-बारह जने हैं। जिनके घर देहात में हैं, उनके लड़कों को अस्सी प्रतिशत इसी प्रकार विद्या-लाभ करना पड़ता है। अत: लाभ के अंकों में अन्त तक बिल्कुल शून्य न पड़ने पर भी जो पड़ता है, उसका हिसाब लगाने के लिए इन कुछेक बातों पर विचार कर लेना काफी होगा कि जिन लड़कों को सबेरे आठ बजे के भीतर ही बाहर निकल कर आने-जाने में चार कोस का रास्ता तय करना पड़ता है, चार कोस के माने आठ मील नहीं, उससे भी बहुत अधिक। बरसात के दिनों में सिर पर बादलों का पानी और पाँवों के नीचे घुटनों तक कीचड़ के बदले धूप के समुद्र में तैरते हुए स्कूल और घर आना-जाना पड़ता है, उन अभागे बालकों को माँ-सरस्वती प्रसन्न होकर वर दें कि उनके कष्टों को देखकर वे कहीं अपना मुँह दिखाने की बात भी नहीं सोच पातीं।

 



तदुपरान्त यह कृतविद्य बालकों का दल बड़ा होकर एक दिन गांव में ही बैठे या भूख की आग बुझाने के लिए कहीं अन्यत्र चला जाय, उनके चार कोस तक पैदल आने जाने की विद्या का तेज आत्म-प्रकाश करेगा-ही-करेगा। कोई-कोई को कहते सुना है, ‘अच्छा, जिन्हें भूख की आग है, उनकी बात भले ही छोड़ दी जाय, परन्तु जिन्हें वह आग नहीं है, वैसे सब भले आदमी किस (जाने किस गाँव के लड़के की डायरी से उद्धृत। उनका असली नाम जानने की किसी को आवश्यकता नहीं, निषेध भी है। चालू नाम तो रख लीजिये- न्याड़ा -जिसके केश मुड़े हों।)

सुख के लिए गाँव छोड़कर जाते हैं ? उनके रहने पर तो गाँव की ऐसी दुर्दशा नहीं होती।’

मलेरिया की बात नहीं छेड़ता। उसे रहने दो, परन्तु इन चार कोस तक पैदल चलने की आग में कितने भद्र लोग बाल-बच्चों को लेकर गाँव छोड़कर शहर चले गए हैं, उनकी कोई संख्या नहीं है। इसके बाद एक दिन बाल-बच्चों का पढ़ना-लिखना भी समाप्त हो जाता है, तब फिर शहर की सुख सुविधा में रुचि लेकर वे लोग गाँव में लौटकर नहीं आ पाते !

परन्तु रहने दो इन सब व्यर्थ बातों को। स्कूल जाता हूँ- दो कोस के बीच ऐसे ही दो-तीन गाँव पार करने पड़ते हैं। किसके बाग में आम पकने शुरू हुये हैं, किस जंगल में करौंदे काफी लगे हैं, किसके पेड़ पर कटहल पकने को हैं, किसके अमृतवान केले की गहर करने वाली ही है, किसके घर के सामने वाली झाड़ी में अनन्नास का फल रंग बदल रहा है, किसकी पोखर के किनारे वाले खजूर के पेड़ से खजूर तोड़कर खाने से पकड़े जाने की संभावना कम है, इन सब खबरों को लेने में समय चला जाता है, परन्तु जो वास्तविक विद्या है, कमस्फट्का की राजधानी का क्या नाम है एवं साइबेरिया की खान में चाँदी मिलती है या सोना मिलता है-यह सब आवश्यक तथ्य जानने का तनिक भी फुरसत नहीं मिलती।

इसीलिए इम्तहान के समय ‘एडिन क्या है’ पूछे जाने पर कहता ‘पर्शिया का बन्दर’ और हुमायूँ के पिता का नाम पूछे जाने पर लिख आया तुगलक खाँ-एवं आज चालीस का कोठा पार हो जाने पर भी देखता हूँ, उन सब विषयों में धारणा प्राय: वैसी ही बनी हुई है-तदुपरान्त प्रमोशन के दिन मुँह लटकाकर घर लौट आता और कभी दल बाँधकर मास्टर को ठीक करने की सोचता, और कभी सोचता, ऐसे वाहियात स्कूल को छोड़ देना ही ठीक है

हमारे गाँव के एक लड़के के साथ बीच-बीच में स्कूल मार्ग पर भेंट हो जाया करती थी। उसका नाम था मृत्युन्जय। मेरी अपेक्षा वह बहुत बड़ा था। तीसरी क्लास में पढ़ता था। कब वह पहले-पहल तीसरी क्लास में चढ़ा, यह बात हममें से कोई नहीं जानता था-सम्भवत:वह पुरातत्वविदों की गवेषणा का विषय था, परन्तु हम लोग उसे इस तीसरे क्लास में ही बहुत दिनों से देखते आ रहे थे। उसके चौथे दर्जे में पढ़ने का इतिहास भी कभी नहीं सुना था, दूसरे दर्जे से चढ़ने की खबर भी कभी नहीं मिली थी। मृत्युन्जय के माता-पिता, भाई-बहिन कोई नहीं थे, था केवल गाँव के एक ओर एक बहुत बड़ा आम-कटहल का बगीचा और उसके बीच एक बहुत बड़ा खण्डहर-सा मकान, और थे एक दूसरे के रिस्ते के चाचा। चाचा का काम था भतीजे को अनेकों प्रकार से बदनामी करते रहना, ‘वह गाँजा पीता है’ ऐसे ही और भी क्या-क्या ! उनका एक और काम था यह कहते फिरना, ‘इस बगीचे का आधा हिस्सा उनका है, नालिश करके दखल करने भर की देर है।’ उन्होंने एक दिन दखल भी अवश्य पा लिया, परन्तु वह जिले की अदालत में नालिश करके ही, ऊपर की अदालत के हुक्म से। परन्तु वह बात पीछे होगी।

मृत्युन्जय स्वयं ही पका कर खाता एवं आमों की फसल में आम का बगीचा किसी को उठा देने पर उसका सालभर खाने-पहिनने का काम चल जाता, और अच्छी तरह ही चल जाता। जिस दिन मुलाकात हुई, उसी दिन देखा, वह छिन्न-भिन्न मैली किताबों को बगल में दबाये रास्ते के किनारे चुप-चाप चल रहा है। उसे कभी किसी के साथ अपनी ओर से बातचीत करते नहीं देखा-अपितु अपनी ओर से बात स्वयं हमीं लोग करते। उसका प्रधान कारण था कि दूकान से खाने-पीने की चीजें खरीदकर खिलाने वाला गाँव में उस जैसा कोई नहीं था। और केवल लड़के ही नहीं ! कितने ही लड़कों के बाप कितनी ही बार गुप्त रूप से अपने लड़कों को भेजकर उसके पास ‘स्कूल की फीस खो गई है’ पुस्तक चोरी चली गई’ इत्यादि कहलवा कर रुपये मँगवा लेते, इसे कहा नहीं जा सकता। परन्तु ऋण स्वीकार करने की बात तो दूर रही, उसके लड़के ने कोई बात भी की है, यह बात भी कोई बाप भद्र-समाज में कबूल नहीं करना चाहता-गाँव भर में मृत्युन्जय का ऐसा ही सुनाम था।

बहुत दिनों से मृत्युन्जय से भेंट नही हुई। एक दिन सुनाई पड़ा, वह मराऊ रक्खा है। फिर एक दिन सुना गया, मालपाड़े के एक बुड्ढ़े ने उसका इलाज करके एवं उसकी लड़की विलासी ने सेवा करके मृत्युन्जय को यमराज केमाल मुँह में जाने से बचा लिया है।

बहुत दिनों तक मैंने उसकी बहुत-सी मिठाई का सदुपयोग किया था-मन न जाने कैसा होने लगा, एक दिन शाम के अँधेरे में छिपकर उसे देखने गया- उसके खण्डर-से मकान में दीवालों की बला नहीं है। स्वच्छन्दता से भीतर

माल- बंगाल की एक जाति जो साँप के काटे का इलाज करती है।

घुसकर देखा, घर का दरवाजा खुला है, एक बहुत तेज दीपक जल रहा है, और ठीक सामने ही तख्त के ऊपर धुले-उजले बिछौने पर मृत्युन्जय सो रहा है। उसके कंकाल जैसे शरीर को देखते ही समझ में आ गया, सचमुच ही यमराज ने प्रयत्न करने में कोई कमी नहीं रक्खी, तो भी वह अन्त तक सुविधापूर्वक उठा नहीं सका, केवल उसी लड़की के जोर से। वह सिरहाने बैठी पंखे से हवा झल रही थी। अचानक मनुष्य को देख चौंककर उठ खड़ी हुई। यह उसी बुड्ढ़े सपेरे की लड़की विलासी है। उसकी आयु अट्ठारह की है या अट्ठाईस की-सो ठीक निश्चित नहीं कर सका, परन्तु मुँह की ओर देखने भर से खूब समझ गया, आयु चाहे जो हो, मेहनत करते-करते और रात-रात भर जागते रहने से इसके शरीर में अब कुछ नहीं रहा है। ठीक जैसे फूलदानी में पानी देकर भिगो रक्खे गये बासी फूल की भाँति हाथ का थोड़ा-सा स्पर्श लगते ही, थोड़ा-सा हिलाते-डुलाते ही झड़ पड़ेगा।

मृत्युन्जय मुझे पहिचानते हुये बोला- ‘कौन न्याड़ा ?’

बोला- ‘हाँ।’

मृत्युन्जय ने कहा- ‘बैठो।’

लड़की गर्दन झुकाए खड़ी रही। मृत्युन्जय ने दो-चार बातों में जो कहा, उसका सार यह था कि उसे खाट पर पड़े डेढ़ महीना हो चला है। बीच में दस-पन्द्रह दिन वह अज्ञान-अचैतन्य अवस्था में पड़ा रहा, अब कुछ दिन हुए वह आदमियों को पहिचानने लगा है, यद्यपि अभी तक वह बिछौना छोड़कर उठ नहीं सकता, परन्तु अब कोई डर की बात नहीं है।

अपरिचिता कहानी /ravindranath tangore

हम आपके लिए  ravindranath tangore ki प्रसिद्ध कहानी अपरिचिता ले कर आये हैं। उम्मीद है कि ये story आपको पसंद आएगी।

Ravindranath tagore story

 

आज मेरी आयु केवल सत्ताईस साल की है। यह जीवन न दीर्घता के हिसाब से बड़ा है, न गुण के हिसाब से। तो भी इसका एक विशेष मूल्य है। यह उस फूल के समान है जिसके वक्ष पर भ्रमर आ बैठा हो और उसी पदक्षेप के इतिहास ने उसके जीवन के फल में गुठली का-सा रूप धारण कर लिया हो।

 

वह इतिहास आकार में छोटा है, उसे छोटा करके ही लिखूंगा। जो छोटे को साधारण समझने की भूल नहीं करेंगे वे इसका रस समझेंगे।

कॉलेज में पास करने के लिए जितनी परीक्षाएं थीं सब मैंने खत्म कर ली हैं। बचपन में मेरे सुंदर चेहरे को लेकर पंडितजी को सेमल के फूल तथा माकाल फल (बाहर से देखने में सुंदर तथा भीतर से दुर्गंधयुक्त और अखाद्य गुदे वाला एक फल) के साथ मेरी तुलना करके हंसी उड़ाने का मौका मिला था। तब मुझे इससे बड़ी लज्जा लगती थी; किंतु बड़े होने पर सोचता रहा हूं कि यदि पुनर्जन्म हो तो मेरे मुख पर सुरूप और पंडितजी के मुख पर विद्रूप इसी प्रकार प्रकट हो। एक दिन था जब मेरे पिता गरीब थे। वकालत करके उन्होंने बहुत-सा रुपया कमाया, भोग करने का उन्हें पल-भर भी समय नहीं मिला। मृत्यु के समय उन्होंने जो लंबी सांस ली थी वही उनका पहला अवकाश था।

उस समय मेरी अवस्था कम थी। मां के ही हाथों मेरा लालन-पालन हुआ। मां गरीब घर की बेटी थीं; अत: हम धनी थे यह बात न तो वे भूलतीं, और न मुझे भूलने देतीं बचपन में मैं सदा गोद में ही रहा, शायद इसीलिए मैं अंत तक पूरी तौर पर वयस्क ही नहीं हुआ। आज ही मुझे देखने पर लगेगा जैसे मैं अन्नपूर्णा की गोद में गजानन का छोटा भाई होऊं।

मेरे असली अभिभावक थे मेरे मामा। वे मुझसे मुश्किल से छ: वर्ष बड़े होंगे। किंतु, फल्गु की रेती की तरह उन्होंने हमारे सारे परिवार को अपने हृदय में सोख लिया था। उन्हें खोदे बिना इस परिवार का एक भी बूंद रस पाने का कोई उपाय नहीं। इसी कारण मुझे किसी भी वस्तु के लिए कोई चिंता नहीं करनी पड़ती।

हर कन्या के पिता स्वीकार करेंगे कि मैं सत्पात्र हूं। हुक्का तक नहीं पीता। भला आदमी होने में कोई झंझट नहीं है, अत: मैं नितांत भलामानस हूं। माता का आदेश मानकर चलने की क्षमता मुझमें है- वस्तुत: न मानने की क्षमता मुझमें नहीं है। मैं अपने को अंत:पुर के शासनानुसार चलने के योग्य ही बना सका हूं, यदि कोई कन्या स्वयंवरा हो तो इन सुलक्षणों को याद रखे।

बड़े-बड़े घरों से मेरे विवाह के प्रस्ताव आए थे। किंतु मेरे मामा का, जो धरती पर मेरे भाग्य देवता के प्रधान एजेंट थे, विवाह के संबंध में एक विशेष मत था। अमीर की कन्या उन्हें पसंद न थी। हमारे घर जो लड़की आए वह सिर झुकाए हुए आए, वे यही चाहते थे। फिर भी रुपये के प्रति उनकी नस-नस में आसक्ति समाई हुई थी। वे ऐसा समधी चाहते थे जिसके पास धन तो न हो, पर जो धन देने में त्रुटि न करे। जिसका शोषण तो कर लिया जाए, पर जिसे घर आने पर गुड़गुड़ी के बदले बंधे हुक्के में(गुड़गुड़ी हुक्का अधिक सम्मान-सूचक समझा जाता है, बंधा हुक्का मामूली हुक्का होता है।)तंबाकू देने पर जिसकी शिकायत न सुननी पड़े।

मेरा मित्र हरीश कानपुर में काम करता था। छुट्टियों में उसने कलकत्ता आकर मेरा मन चंचल कर दिया। बोला, सुनो जी, अगर लड़की की बात हो तो एक अच्छी-खासी लड़की है।

कुछ दिन पहले ही एम.ए. पास किया था। सामने जितनी दूर तक दृष्टि जाती, छुट्टी धू-धू कर रही थी; परीक्षा नहीं है, उम्मीदवारी नहीं, नौकरी नहीं; अपनी जायदाद देखने की चिंता भी नहीं, शिक्षा भी नहीं, इच्छा भी नहीं- होने में भीतर मां थीं और बाहर मामा।

इस अवकाश की मरुभूमि में मेरा हृदय उस समय विश्वव्यापी नारी-रूप की मरीचिका देख रहा था- आकाश में उसकी दृष्टि थी, वायु में उसका निश्वास, तरु-मर्मर में उसकी रहस्यमयी बातें।

ऐसे में ही हरीश आकर बोला, अगर लड़की की बात हो तो। मेरा तन मन वसंत वायु से दोलायित बकुल वन की नवपल्लव-राशि की भांति धूप-छांह का पट बुनने लगा। हरीश आदमी था रसिक, रस उंडेलकर वर्णन करने की उसमें शक्ति थी, और मेरा मन था तृर्षात्त।

मैंने हरीश से कहा, एक बार मामा से बात चलाकर देखो!

बैठक जमाने में हरीश अद्वितीय था। इससे सर्वत्र उसकी खातिर होती थी।

मामा भी उसे पाकर छोड़ना नहीं चाहते थे। बात उनकी बैठक में चली। लड़की की अपेक्षा लड़की के पिता की जानकारी ही उनके लिए महत्वपूर्ण थी। पिता की अवस्था वे जैसी चाहते थे वैसी ही थी। किसी जमाने में उनके वंश में

लक्ष्मी का मंगल घट भरा रहता था। इस समय उसे शून्य ही समझो, फिर भी तले में थोड़ा-बहुत बाकी था। अपने प्रांत में वंश-मर्यादा की रक्षा करके चलना सहज न समझकर वे पश्चिम में जाकर वास कर रहे थे। वहां गरीब गृहस्थ की ही भांति रहते थे। एक लड़की को छोड़कर उनके और कोई नहीं था। अतएव उसी के पीछे लक्ष्मी के घट को एकदम औंधा कर देने में हिचकिचाहट नहीं होगी।

यह सब तो सुंदर था। किंतु, लड़की की आयु पंद्रह की है यह सुनकर मामा का मन भारी हो गया। वंश में तो कोई दोष नहीं है? नहीं, कोई दोष नहीं- पिता अपनी कन्या के योग्य वर कहीं भी न खोज पाए। एक तो वर की हाट में मंहगाई थी, तिस पर धनुष-भंग की शर्त, अत: बाप सब्र किए बैठे हैं,-किंतु कन्या की आयु सब्र नहीं करती।

जो हो, हरीश की सरस रचना में गुण था मामा का मन नरम पड़ गया। विवाह का भूमिका-भाग निर्विघ्न पूरा हो गया। कलकत्ता के बाहर बाकी जितनी दुनिया है, सबको मामा अंडमान द्वीप के अंतर्गत ही समझते थे। जीवन में एकबार विशेष काम से वे कोन्नगर तक गए थे। मामा यदि मनु होते तो वे अपनी संहिता में हावड़ा के पुल को पार करने का एकदम निषेध कर देते। मन में इच्छा थी, खुद जाकर लड़की देख आऊं। पर प्रस्ताव करने का साहस न कर सका।

कन्या को आशीर्वाद देने (बंगालियों में विवाह पक्का करने के लिए एक रस्म होती है- जिसमें वर-पक्ष के लोग कन्या को और कन्या-पक्ष के लोग वर को आशीर्वाद देकर कोई आभूषण दे जाते हैं।) जिनको भेजा गया वे हमारे विनु दादा थे, मेरे फुफेरे भाई। उनके मत, रुचि एवं दक्षता पर मैं सोलह आने निर्भर कर सकता था। लौटकर विनु दादा ने कहा, बुरी नहीं है जी! असली सोना है।

विनु दादा की भाषा अत्यंत संयत थी। जहां हम कहते थे ‘अपूर्व’, वहां वे कहते ‘कामचलाऊ’। अतएव मैं समझा, मेरे भाग्य में पंचशर का प्रजापति से कोई विरोध नहीं है।

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कहना व्यर्थ है, विवाह के उपलक्ष्य में कन्या पक्ष को ही कलकत्ता आना पड़ा। कन्या के पिता शंभूनाथ बाबू हरीश पर कितना विश्वास करते थे, इसका प्रमाण यह था कि विवाह के तीन दिन पहले उन्होंने मुझे पहली बार देखा और आशीर्वाद की रस्म पूरी कर गए। उनकी अवस्था चालीस के ही आस-पास होगी। बाल काले थे, मूंछों का पकना अभी प्रारंभ ही हुआ था। रूपवान थे, भीड़ में देखने पर सबसे पहले उन्हीं पर नजर पड़ने लायक उनका चेहरा था।

आशा करता हूं कि मुझे देखकर वे खुश हुए। समझना कठिन था, क्योंकि वे अल्पभाषी थे। जो एकाध बात कहते भी थे उसे मानो पूरा जोर देकर नहीं कहते थे। इस बीच मामा का मुंह अबाध गति से चल रहा था- धन में, मान में हमारा स्थान शहर में किसी से कम नहीं था, वे नाना प्रकार से इसी का प्रचार कर रहे थे। शंभूनाथ बाबू ने इस बात में बिल्कुल योग नहीं दिया- किसी भी प्रसंग में कोई ‘हां’ या ‘हूं’ तक नहीं सुनाई पड़ी। मैं होता तो निरुत्साहित हो जाता, किंतु मामा को हतोत्साहित करना कठिन था। उन्होंने शंभूनाथ बाबू का शांत स्वभाव देखकर सोचा कि आदमी बिल्कुल निर्जीव है, तनिक भी तेज नहीं। समधियों में और जो हो, तेज भाव होना पाप है, अतएव, मन-ही-मन मामा खुश हुए। शंभूनाथ बाबू जब उठे तो मामा ने संक्षेप में ऊपर से ही उनको विदा कर दिया, गाड़ी में बिठाने नहीं गए।

दहेज के संबंध में दोनों पक्षों में बात पक्की हो गई थी। मामा अपने को असाधारण चतुर समझकर गर्व करते थे। बातचीत में वे कहीं भी कोई छिद्र न छोड़ते। रुपये की संख्या तो निश्चित थी ही, ऊपर से गहना कितने भर एवं सोना किस दर का होगा, यह भी एकदम तय हो गया था। मैं स्वयं इन बातों में नहीं था; न जानता ही था कि क्या लेन-देन निश्चित हुआ है। मैं जानता था कि यह स्थूल भाग ही विवाह का एक प्रधान अंग है; एवं उस अंश का भार जिनके ऊपर है वे एक कौड़ी भी नहीं ठगाएंगे। वस्तुत: अत्यंत चतुर व्यक्ति के रूप में मामा हमारे सारे परिवार में गर्व की प्रधान वस्तु थे। जहां कहीं भी हमारा कोई संबंध हो पर्वत ही बुध्दि की लड़ाई में जीतेंगे, यह बिल्कुल पक्की बात थी। इसलिए हमारे यहां कभी न रहने पर भी एवं दूसरे पक्ष में कठिन अभाव होते हुए भी हम जीतेंगे, हमारे परिवार की जिद थी- इसमें चाहे कोई बचे या मरे।

हल्दी चढ़ाने की रस्म बड़ी धूमधाम से हुई। ढोने वाले इतने थे कि उनकी संख्या का हिसाब रखने के लिए क्लर्क रखना पड़ता। उनको विदा करने में अवर पक्ष का जो नाकों-दम होगा उसका स्मरण करके मामा के साथ स्वर मिलाकर मां खूब हंसी।

बैंड, शहनाई, फैंसी कंसर्ट आदि जहां जितने प्रकार की जोरदार आवाजें थीं, सबको एक साथ मिलाकर बर्बर कोलाहल रूपी मस्त हाथी द्वारा संगीत सरस्वती के पर्विंन को दलित-विदलित करता हुआ मैं विवाह के घर में जा पहुंचा। अंगूठी, हार, जरी, जवाहरात से मेरा शरीर ऐसा लग रहा था जैसे गहने की दुकान नीलाम पर चढ़ी हो। उनके भावी जमाता का मूल्य कितना था यह जैसे कुछ मात्रा में सर्वांग में स्पष्ट रूप से लिखकर भावी ससुर के साथ मुकाबला करने चला था।

मामा विवाह के घर पहुंचकर प्रसन्न नहीं हुए। एक तो आंगन में बरातियों कै बैठने के लायक जगह नहीं थी, तिस पर संपूर्ण आयोजन एकदम साधारण ढंग का था। ऊपर से शंभूनाथ बाबू का व्यवहार भी निहायत ठंडा था। उनकी विनय अजस्र नहीं थी। मुंह में शब्द ही न थे। बैठे गले, गंजी खोपड़ी, कृष्णवर्ण एवं स्थूल शरीर वाले उनके एक वकील मित्र यदि कमर में चादर बांधे, बराबर हाथ जोड़े, सिर हिलाते हुए, नम्रतापूर्ण स्मितहास्य और गद्गद वचनों से कंसर्ट पार्टी के करताल बजाने वाले से लेकर वरकर्ता तक प्रत्येक को बार-बार प्रचुर मात्रा में अभिषिक्त न कर देते तो शुरू में ही मामला इस पार या उस पार हो जाता।

मेरे सभा में बैठने के कुछ देर बाद ही मामा शंभूनाथ बाबू को बगल के कमरे में बुला ले गए। पता नहीं, क्या बातें हुईं। कुछ देर बाद ही शंभूनाथ बाबू ने आकर मुझसे कहा, लालाजी, जरा इधर तो आइए!’

मामला यह था- सभी का न हो, किंतु किसी-किसी मनुष्य का जीवन में कोई एक लक्ष्य रहता है। मामा का एकमात्र लक्ष्य था-वे किसी भी प्रकार किसी से ठगे नहीं जाएंगे। उन्हें डर था कि उनके समधी उन्हें गहनों में धोखा दे सकते हैं- विवाह-कार्य समाप्त हो जाने पर उस धोखे का कोई प्रतिकार न हो सकेगा। घर-किराया, सौगात, लोगों की विदाई आदि के विषय में जिस प्रकार की खींचातानी का परिचय मिला उससे मामा ने निश्चय किया था- लेने-देने के संबंध में इस आदमी की केवल जबानी बात पर निर्भर रहने से काम न चलेगा। इसी कारण घर के सुनार तक को साथ लाए थे। बगल के कमरे में जाकर देखा, मामा एक कुर्सी पर बैठे थे। एक सुनार अपनी तराजू, बाट और कसौटी आदि लिए जमीन पर।

शंभूनाथ बाबू ने मुझसे कहा, तुम्हारे मामा कहते हैं कि विवाह-कार्य शुरू होने के पहले ही वे कन्या के सारे गहने जंचवा देखेंगे, इसमें तुम्हारी क्या राय है?

मैं सिर नीचा किए चुप रहा।

मामा बोले, वह क्या कहेगा। मैं जो कहूंगा, वही होगा।

शंभूनाथ बाबू ने मेरी ओर देखकर कहा, तो फिर यही तय रहा? ये जो कहेंगे वही होगा? इस संबंध में तुम्हें कुछ नहीं कहना है?

मैंने जरा गर्दन हिलाकर इशारे से बताया, इन सब बातों में मेरा बिल्कुल भी अधिकार नहीं है।

अच्छा तो बैठो, लड़की के शरीर से सारा गहना उतारकर लाता हूं। यह कहते हुए वे उठे।

मामा बोले, अनुपम यहां क्या करेगा? वह सभा में जाकर बैठे।

शंभूनाथ बोले, नहीं, सभा में नहीं, यहीं बैठना होगा।

कुछ देर बाद उन्होंने एक अंगोछे में बंधे गहने लाकर चौकी के ऊपर बिछा दिए। सारे गहने उनकी पितामही के जमाने के थे, नए फैशन का बारीक काम न था- जैसा मोटा था वैसा ही भारी था।

सुनार ने हाथ में गहने उठाकर कहा, इन्हें क्या देखूं। इसमें कोई मिलावट नहीं है- ऐसे सोने का आजकल व्यवहार ही नहीं होता।

यह कहते हुए उसने मकर के मुंह वाला मोटा एक बाला कुछ दबाकर दिखाया, वह टेढ़ा हो जाता था।

मामा ने उसी समय नोट-बुक में गहनों की सूची बना ली- कहीं जो दिखाया गया था उसमें से कुछ कम न हो जाए। हिसाब करके देखा, गहना जिस मात्रा में देने की बात थी इनकी संख्या, दर एवं तोल उससे अधिक थी।

गहनों में एक जोड़ा इयरिंग था। शंभूनाथ ने उसको सुनार के हाथ में देकर कहा, जरा इसकी परीक्षा करके देखो!

सुनार ने कहा, यह विलायती माल है, इसमें सोने का हिस्सा मामूली ही है।

शंभू बाबू ने इयरिंग जोड़ी मामा के हाथ में देते हुए कहा, इसे आप ही रखें!

मामा ने उसे हाथ में लेकर देखा, यही इयरिंग कन्या को देकर उन्होंने आशीर्वाद की रस्म पूरी की थी।

मामा का चेहरा लाल हो उठा, दरिद्र उनको ठगना चाहेगा, किंतु वे ठगे नहीं जाएंगे इस आनंद-प्राप्ति से वंचित रह गए, एवं इसके अतिरिक्त कुछ ऊपरी प्राप्ति भी हुई। मुंह अत्यंत भारी करके बोले, अनुपम, जाओ तुम सभा में जाकर बैठो!

शंभूनाथ बाबू बोले, नहीं, अब सभा में बैठना नहीं होगा। चलिए, पहले आप लोगों को खिला दूं।

मामा बोले, यह क्या कह रहे हैं? लग्न

शंभूनाथ बाबू ने कहा, उसके लिए चिंता न करें- अभी उठिए!

आदमी निहायत भलामानस था, किंतु अंदर से कुछ ज्यादा हठी प्रतीत हुआ। मामा को उठना पड़ा। बरातियों का भी भोजन हो गया। आयोजन में आडंबर नहीं था। किंतु रसोई अच्छी बनी थी और सब-कुछ साफ-सुथरा। इससे सभी तृप्त हो गए।

बरातियों का भोजन समाप्त होने पर शंभूनाथ बाबू ने मुझसे खाने को कहा। मामा ने कहा, यह क्या कह रहे हैं? विवाह के पहले वर कैसे भोजन करेगा!

इस संबंध में वे मामा के व्यक्त किए मत की पूर्ण उपेक्षा करके मेरी ओर देखकर बोले, तुम क्या कहते हो? भोजन के लिए बैठने में कोई दोष है?

मूर्तिमती मातृ-आज्ञा-स्वरूप मामा उपस्थित थे, उनके विरुध्द चलना मेरे लिए असंभव था। मैं भोजन के लिए न बैठ सका।

तब शंभूनाथ बाबू ने मामा से कहा, आप लोगों को बहुत कष्ट दिया है। हम लोग धनी नहीं हैं। आप लोगों के योग्य व्यवस्था नहीं कर सके, क्षमा करेंगे। रात हो गई है, आप लोगों का कष्ट और नहीं बढ़ाना चाहता। तो फिर इस समय-

मामा बोले, तो, सभा में चलिए, हम तो तैयार हैं।

शंभूनाथ बोले, तब आपकी गाड़ी बुलवा दूं?

मामा ने आश्चर्य से कहा, मजाक कर रहे हैं क्या?

शंभूनाथ ने कहा, मजाक तो आप ही कर चुके हैं। मजाक के संपर्क को स्थायी करने की मेरी इच्छा नहीं है।

मामा दोनों आंखें विस्फारित किए अवाक् रह गए।

शंभूनाथ ने कहा, अपनी कन्या का गहना मैं चुरा लूंगा, जो यह बात सोचता है उसके हाथों मैं कन्या नहीं दे सकता।

मुझसे एक शब्द कहना भी उन्होंने आवश्यक नहीं समझा। कारण, प्रमाणित हो गया था, मैं कुछ भी नहीं था।

उसके बाद जो हुआ उसे कहने की इच्छा नहीं होती। झाड़-फानूस तोड़-फोड़कर चीज-वस्तु को नष्ट-भ्रष्ट करके बरातियों का दल दक्ष-यज्ञ का नाटक पूरा करके बाहर चला आया।

घर लौटने पर बैंड, शहनाई और कंसर्ट सब साथ नहीं बजे एवं अभ्रक के झाड़ों ने आकाश के तारों के ऊपर अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करके कहां महानिर्वाण प्राप्त किया, पता नहीं चला।

3

घर के सब लोग क्रोध से आग-बबूला हो गए। कन्या के पिता को इतना घमंड कलियुग पूर्ण रूप से आ गया है!

सब बोले, देखें, लड़की का विवाह कैसे करते हैं। किंतु, लड़की का विवाह नहीं होगा, यह भय जिसके मन में न हो उसको दंड देने का क्या उपाय है?

बंगाल-भर में मैं ही एकमात्र पुरुष था जिसको स्वयं कन्या के पिता ने जनवासे से लौटा दिया था। इतने बड़े सत्पात्र के माथे पर कलंक का इतना बड़ा दाग किस दुष्ट ग्रह ने इतना प्रचार करके गाजे-बाजे से समारोह करके आंक दिया? बराती यह कहते हुए माथा पीटने लगे कि विवाह नहीं हुआ, लेकिन हमको धोखा देकर खिला दिया- संपूर्ण अन्न सहित पक्वाशय निकालकर वहां फेंक आते तो अफसोस मिटता।

‘विवाह के वचन-भंग का और मान-हानि का दावा करूंगा’ कहकर मामा घूम-घूमकर खूब शोर मचाने लगे। हितैषियों ने समझा दिया कि ऐसा करने से जो तमाशा बाकी रह गया है वह भी पूरा हो जाएगा।

कहना व्यर्थ है, मैं भी खूब क्रोधित हुआ था। ‘किसी प्रकार शंभूनाथ बुरी तरह हारकर मेरे पैरों पर आ गिरे,’ मूंछों की रेखा पर ताव देते-देते केवल यही कामना करने लगा।

किंतु, इस आक्रोश की काली धारा के समीप एक और स्रोत बह रहा था, जिसका रंग बिल्कुल भी काला नहीं था। संपूर्ण मन उस अपरिचित की ओर दौड़ गया। अभी तक उसे किसी भी प्रकार वापस नहीं मोड़ सका। दीवार की आड़ में रह गया। उसके माथे पर चंदन चर्चित था, देह पर लाल साड़ी, चेहरे पर लज्जा की ललाई, हृदय में क्या था यह कैसे कह सकता हूं! मेरे कल्पलोक की कल्पलता वसंत के समस्त फूलों का भार मुझे निवेदित कर देने के लिए झुक पड़ी थी। हवा आ रही थी, सुगंध मिल रही थी, पत्तों का शब्द सुन रहा था- केवल एक पग बढ़ाने की देर थी- इसी बीच वह पग-भर की दूरी क्षण-भर में असीम हो गई।

इतने दिन तक रोज शाम को मैंने विनु दादा के घर जाकर उनको परेशान कर डाला था। विनु दादा की वर्णन-शैली की अत्यंत सघन संक्षिप्तता के कारण उनकी प्रत्येक बात ने स्फुल्लिंग के समान मेरे मन में आग लगा दी थी। मैंने समझा था कि लड़की का रूप बड़ा अपूर्व था; किंतु न तो उसे आंखों देखा और न उसका चित्र, सब-कुछ अस्पष्ट रह गया। बाहर तो उसने पकड़ दी ही नहीं, उसे मन में भी न ला सका- इसी कारण भूत के समान दीर्घ निश्वास लेकर मन उस दिन की उस विवाह-सभा की दीवार के बाहर चक्कर काटने लगा।

हरीश से सुना, लड़की को मेरा फोटोग्राफ दिखाया गया था। पसंद अवश्य किया होगा। न करने का तो कोई कारण ही न था। मेरा मन कहता है, वह चित्र उसने किसी बक्स में छिपा रखा है। कमरे का दरवाजा बन्द करके अकेली किसी-किसी निर्जन दोपहरी में क्या वह उसे खोलकर न देखती होगी? जब झुककर देखती होगी तब चित्र के ऊपर क्या उसके मुख के दोनों ओर से खुले बाल आकर नहीं पड़ते होंगे? अकस्मात् बाहर किसी के पैर की आहट पाते ही क्या वह झट-पट अपने सुगंधित अंचल में चित्र को छिपा न लेती होगी?

दिन बीत जाते हैं। एक वर्ष बीत गया। मामा तो लज्जा के मारे विवाह संबंध की बात ही न छेड़ पाते। मां की इच्छा थी, मेरे अपमान की बात जब समाज के लोग भूल जाएंगे तब विवाह का प्रयत्न करेंगी।

दूसरी ओर मैंने सुना कि शायद उस लड़की को अच्छा वर मिल गया है, किंतु उसने प्रण किया है कि विवाह नहीं करेगी। सुनकर मन आनंद के आवेश से भर गया। मैं कल्पना में देखने लगा, वह अच्छी तरह खाती नहीं; संध्या हो जाती है, वह बाल बांधना भूल जाती है। उसके पिता उसके मुंह की ओर देखते हैं और सोचते हैं, ‘मेरी लड़की दिनोंदिन ऐसी क्यों होती जा रही है?’ अकस्मात् किसी दिन उसके कमरे में आकर देखते हैं, लड़की के नेत्र आंसुओं से भरे हैं। पूछते हैं, बेटी, तुझे क्या हो गया है, मुझे बता? लड़की झटपट आंसू पोंछकर कहती है, ‘कहां, कुछ भी तो नहीं हुआ, पिताजी!’ बाप की इकलौती लड़की है न- बड़ी लाड़ली लड़की है। अनावृष्टि के दिनों में फूल की कली के समान जब लड़की एकदम मुर्झा गई तो पिता के प्राण और अधिक सहन न कर सके। मान त्यागकर वे दौड़कर हमारे दरवाजे पर आए। उसके बाद? उसके बाद मन में जो काले रंग की धारा बह रही थी वह मानो काले सांप के समान रूप धरकर फुफकार उठी। उसने कहा, अच्छा है, फिर एक बार विवाह का साज सजाया जाए, रोशनी जले, देश-विदेश के लोगों को निमंत्रण दिया जाए, उसके बाद तुम वर के मौर को पैरों से कुचलकर दल-बल लेकर सभा से उठकर चले आओ! किंतु जो धारा अश्रु-जल के समान शुभ्र थी, वह राजहंस का रूप धारण करके बोली, जिस प्रकार मैं एक दिन दमयंती के पुष्पवन में गई थी मुझे उसी प्रकार एक बार उड़ जाने दो-मैं विरहिणी के कानों में एक बार सुख-संदेह दे आऊं। इसके बाद? उसके बाद दु:ख की रात बीत गई, नव वर्षा का जल बरसा, म्लान फूल ने मुंह उठाया- इस बार उस दीवार के बाहर सारी दुनिया के और सब लोग रह गए, केवल एक व्यक्ति के भीतर प्रवेश किया। फिर मेरी कहानी खत्म हो गई।

4

लेकिन कहानी ऐसे खत्म नहीं हुई। जहां पहुंचकर वह अनंत हो गई है वहां का थोड़ा-सा विवरण बताकर अपना यह लेख समाप्त करूंगा।

मां को लेकर तीर्थ करने जा रहा था। भार मेरे ही ऊपर था, क्योंकि मामा इस बार भी हावड़ा पुल के पार नहीं हुए। रेलगाड़ी में सो रहा था। झोंके खाते-खाते दिमाग में नाना प्रकार के बिखरे स्वप्नों का झुनझुना बज रहा था। अकस्मात् किसी एक स्टेशन पर जाग पड़ा, वह भी प्रकाश-अंधकार-मिश्रित एक स्वप्न था। केवल आकाश के तारागण चिरपरिचित थे- और सब अपरिचित अस्पष्ट था; स्टेशन की कई सीधी खड़ी बत्तियां प्रकाश द्वारा यह धरती कितनी अपरिचित है एवं जो चारों ओर है वह कितना अधिक दूर है, यही दिखा रही थीं। गाड़ी में मां सो रही थीं; बत्ती के नीचे हरा पर्दा टंगा था, ट्रंक, बक्स, सामान सब एक-दूसरे के ऊपर तितर-बितर पड़े थे। वह मानो स्वप्नलोक का उलटा-पुलटा सामान हो, जो संध्या की हरी बत्ती के टिमटिमाते प्रकाश में होने और न होने के बीच न जाने किस ढंग से पड़ा था।

इस बीच उस विचित्र जगत की अद्भुत रात में कोई बोल उठा, जल्दी आ जाओ, इस डिब्बे में जगह है।

लगा, जैसे गीत सुना हो। बंगाली लड़की के मुख से बंगला बोली कितनी मधुर लगती है इसका पूरा-पूरा अनुमान ऐसे अनुपयुक्त स्थान पर अचानक सुनकर ही किया जा सकता है। किंतु, इस स्वर को निरी एक लड़की का स्वर कहकर श्रेणी-भुक्त कर देने से काम नहीं चलेगा। यह किसी अन्य व्यक्ति का स्वर था, सुनते ही मन कह उठता है, ‘ऐसा तो पहले कभी नहीं सुना।’

गले का स्वर मेरे लिए सदा ही बड़ा सत्य रहा है। रूप भी कम बड़ी वस्तु नहीं है, किंतु मनुष्य में जो अंतरतम और अनिर्वचनीय है, मुझे लगता है, जैसे कंठ-स्वर उसी की आकृति हो। चटपट जंगला खोलकर मैंने मुंह बाहर निकाला, कुछ भी न दिखा। प्लेटफार्म पर अंधेरे में खड़े गार्ड ने अपनी एक आंख वाली लालटेन हिलाई, गाड़ी चल दी; मैं जंगले के पास बैठा रहा। मेरी आंखों के सामने कोई मूर्ति न थी, किंतु हृदय में मैं एक हृदय का रूप देखने लगा। वह जैसे इस तारामयी रात्रि के समान हो, जो आवृत कर लेती है, किंतु उसे पकड़ा नहीं जा सकता। जो स्वर! अपरिचित कंठ के स्वर! क्षण-भर में ही तुम मेरे चिरपरिचित के आसन पर आकर बैठ गए हो। तुम कैसे अद्भुत हो- चंचल काल के क्षुब्ध हृदय के ऊपर के फूल के समान खिले हों, किंतु उसकी लहरों के आंदोलन से कोई पंखुड़ी तक नहीं हिलती, अपरिमेय कोमलता में जरा भी दाग नहीं पड़ता।

गाड़ी लोहे के मृदंग पर ताल देती हुई चली। मैं मन-ही-मन गाना सुनता जा रहा था। उसकी एक ही टेक थी- ‘डिब्बे में जगह है।’ है क्या, जगह है क्या जगह मिले कैसे, कोई किसी को नहीं पहचानता। साथ ही यह न पहचानना- मात्र कोहरा है, माया है, उसके छिन्न होते ही फिर परिचय का अंत नहीं होता। ओ सुधामय स्वर! जिस हृदय के तुम अद्भुत रूप हो, वह क्या मेरा चिर-परिचित नहीं है? जगह है, है, जल्दी बुलाया था, जल्दी ही आया हूं, क्षण-भर भी देर नहीं की है।

रात में ठीक से नींद नहीं आई। प्राय: हर स्टेशन पर एक बार मुंह निकालकर देखता, भय होने लगा कि जिसको देख नहीं पाया वह कहीं रात में ही न उतर जाए।

दूसरे दिन सुबह एक बड़े स्टेशन पर गाड़ी बदलनी थी हमारे टिकिट फर्स्ट क्लास के थे- आशा थी, भीड़ नहीं होगी। उतरकर देखा, प्लेटफार्म पर साहबों के अर्दलियों का दल सामान लिए गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा है। फौज के कोई एक बड़े जनरल साहब भ्रमण के लिए निकले थे। दो-तीन मिनिट के बाद ही गाड़ी आ गई। समझा, फर्स्ट क्लास की आशा छोड़नी पड़ेगी। मां को लेकर किस डब्बे में चढ लूं, इस बारे में बड़ी चिंता में पड़ गया। पूरी गाड़ी में भीड़ थी। दरवाजे-दरवाजे झांकता हुआ घूमने लगा। इसी बीच सैकंड क्लास के डिब्बे से एक लड़की ने मेरी मां को लक्ष्य करके कहा, आप हमारे डिब्बे में आइए न, यहां जगह है।

मैं तो चौंक पड़ा। वही अद्भुत मधुर स्वर और वही गीत की टेक ‘जगह है’ क्षण-भर की भी देर न करके मां को लेकर डिब्बे में चढ़ गया। सामान चढ़ाने का समय प्राय: नहीं था। मेरे-जैसा असमर्थ दुनिया में कोई न होगा। उस लड़की ने ही कुलियों के हाथ से झटपट चलती गाड़ी में हमारे बिस्तरादि खींच लिए। फोटो खींचने का मेरा एक कैमरा स्टेशन पर ही छूट गया- ध्यान ही न रहा।

उसके बाद- क्या लिखूं, नहीं जानता। मेरे मन में एक अखंड आनंद की तस्वीर है- उसे कहां से शुरू करूं, कहां समाप्त करूं? बैठे-बैठे एक वाक्य के बाद दूसरे वाक्य की योजना करने की इच्छा नहीं होती।

इस बार उसी स्वर को आंखों से देखा। इस समय भी वह स्वर ही जान पड़ा। मां के मुंह की ओर ताका; देखा कि उनकी आंखों के पलक नहीं गिर रहे थे। लड़की की अवस्था सोलह या सत्रह की होगी, किंतु नवयौवन ने उसके देह, मन पर कहीं भी जैसे जरा भी भार न डाला हो। उसकी गति सहज, दीप्ति निर्मल, सौंदर्य की शुचिता अपूर्व थी, उसमें कहीं कोई जड़ता न थी।

मैं देख रहा हूं, विस्तार से कुछ भी कहना मेरे लिए असंभव है। यही नहीं, वह किस रंग की साड़ी किस प्रकार पहने हुए थी, यह भी ठीक से नहीं कह सकता। यह बिल्कुल सत्य है कि उसकी वेश-भूषा में ऐसा कुछ न था जो उसे छोड़कर विशेष रूप से आंखों को आकर्षित करे। वह अपने चारों ओर की चीजों से बढ़कर थी- रजनीगंधा की शुभ्र मंजरी के समान सरल वृंत के ऊपर स्थित, जिस वृक्ष पर खिली थी उसका एकदम अतिक्रमण कर गई थी। साथ में दो-तीन छोटी-छोटी लड़कियां थीं, उनके साथ उसकी हंसी और बातचीत का अंत न था। मैं हाथ में एक पुस्तक लिए उस ओर कान लगाए था। जो कुछ कान में पड़ रहा था वह सब तो बच्चों के साथ बचपने की बातें थीं। उसका विशेषत्व यह था कि उसमें अवस्था का अंतर बिल्कुल भी नहीं था- छोटों के साथ वह अनायास और आनंदपूर्वक छोटी हो गई थी। साथ में बच्चों की कहानियों की सचित्र पुस्तकें थीं- उसी की कोई कहानी सुनाने के लिए लड़कियों ने उसे घेर लिया था, यह कहानी अवश्य ही उन्होंने बीस-पच्चीस बार सुनी होगी। लड़कियों का इतना आग्रह क्यों था यह मैं समझ गया। उस सुधा-कंठ की सोने की छड़ी से सारी कहानी सोना हो जाती थी। लड़की का संपूर्ण तन-मन पूरी तरह प्राणों से भरा था, उसकी सारी चाल-ढाल-स्पर्श में प्राण उमड़ रहा था। अत: लड़कियां जब उसके मुंह से कहानी सुनतीं तब कहानी नहीं, उसी को सुनतीं; उनके हृदय पर प्राणों का झरना झर पड़ता। उसके उस उद्भासित प्राण ने मेरी उस दिन की सारी सूर्य-किरणों को सजीव कर दिया; मुझे लगा, मुझे जिस प्रकृति ने अपने आकाश से वेष्टित कर रखा है वह उस तरुणी के ही अक्लांत, अम्लान प्राणों का विश्व-व्यापी विस्तार है। दूसरे स्टेशन पर पहुंचते ही उसने खोमचे वाले को बुलाकर काफी-सी दाल-मोठ खरीदी, और लड़कियों के साथ मिलकर बिल्कुल बच्चों के समान कलहास्य करते हुए निस्संकोच भाव से खाने लगी। मेरी प्रकृति तो जाल से घिरी हुई थी- क्यों मैं अत्यंत सहज भाव से, उस हंसमुख लड़की से एक मुट्ठी दाल-मोठ न मांग सका? हाथ बढ़ाकर अपना लोभ क्यों नहीं स्वीकार किया।

मां अच्छा और बुरा लगने के बीच दुचिती हो रही थीं। डिब्बे में मैं हूं मर्द, तो भी इसे कोई संकोच नहीं, खासकर वह इस लोभ की भांति खा रही है। यह बात उनको पसंद नहीं आ रही थी; और उसे बेहया कहने का भी उन्हें भ्रम न हुआ। उन्हें लगा, इस लड़की की अवस्था हो गई है, किंतु शिक्षा नहीं मिली। मां एकाएक किसी से बातचीत नहीं कर पातीं। लोगों के साथ दूर-दूर रहने का ही उनको अभ्यास था। इस लड़की का परिचय प्राप्त करने की उनको बड़ी इच्छा थी, किंतु स्वाभाविक बाधा नहीं मिटा पा रही थीं।

इसी समय गाड़ी एक बड़े स्टेशन पर आकर रुक गई। उन जनरल साहब के साथियों का एक दल इस स्टेशन से चढ़ने का प्रयत्न कर रहा था। गाड़ी में कहीं जगह न थी। कई बार वे हमारे डिब्बे के सामने से निकले। मां तो भय के मारे जड़ हो गई, मैं भी मन में शांति का अनुभव नहीं कर रहा था।

गाड़ी छूटने के थोड़ी देर पहले एक देशी रेल-कर्मचारी ने डिब्बों की दो बैंचों के सिरों पर नाम लिखे हुए दो टिकिट लटकाकर मुझसे कहा इस, डिब्बे की ये दो बैंचें पहले से ही दो साहबों ने रिजर्व करा रखी हैं, आप लोगों को दूसरे डिब्बे में जाना होगा।

मैं तो झटपट घबराकर खड़ा हो गया। लड़की हिंदी में बोली, नहीं, हम डिब्बा नहीं छोड़ेंगे।

उस आदमी ने जिद करते हुए कहा, बिना छोड़े कोई चारा नहीं।

किंतु, लड़की के उतरने की इच्छा का कोई लक्षण न देखकर वह उतरकर अंग्रेज स्टेशन-मास्टर को बुला लाया। उसने आकर मुझसे कहा, मुझे खेद है, किंतु-

सुनकर मैंने ‘कुली-कुली’ की पुकार लगाई। लड़की ने उठकर दोनों आंखों से आग बरसाते हुए कहा, नहीं, आप नहीं जा सकते, जैसे हैं बैठे रहिए!

यह कहकर उसने दरवाजे के पास खड़े होकर स्टेशन-मास्टर से अंग्रेजी में कहा, यह डिब्बा पहले से रिजर्व है, यह बात झूठ है।

यह कहकर उसने नाम लिखे टिकटों को खोलकर प्लेटफार्म पर फेंक दिया।

इस बीच में वर्दी पहने साहब अर्दली के साथ दरवाजे के पास आकर खड़ा हो गया था। डिब्बे में अपना सामान चढ़ाने के लिए पहले उसने अर्दली को इशारा किया था। उसके पश्चात् लड़की के मुंह की ओर देखकर, उसकी बात सुनकर, मुखमुद्रा देखकर स्टेशन-मास्टर को थोड़ा छुपा और उसको ओट में ले जाकर पता नहीं क्या कहा। देखा गया, गाड़ी छूटने का समय बीत चुकने पर भी और एक डिब्बा जोड़ा गया, तब कहीं ट्रेन छूटी। लड़की ने अपना दलबल लेकर फिर दुबारा दाल-मोठ खाना शुरू कर दिया, और मैं शर्म के मारे जंगले के बाहर मुंह निकालकर प्रकृति की शोभा देखने लगा।

गाड़ी कानपुर में आकर रुकी। लड़की सामान बांधकर तैयार थी- स्टेशन पर एक अबंगाली नौकर उनको उतारने का प्रयत्न करने लगा।

तब फिर मां से न रहा गया। पूछा, तुम्हारा नाम क्या है, बेटी?

लड़की बोली, मेरा नाम कल्याणी है।

सुनकर मां और मैं दोनों ही चौंक पड़े।

तुम्हारे पिता-

वे यहां डॉक्टर हैं उनका नाम शंभूनाथ सेन है।

उसके बाद ही वे उतर गईं।

उपसंहार

मामा के निषेध को अमान्य करके माता की आज्ञा ठुकराकर मैं अब कानपुर आ गया हूं। कल्याणी के पिता और कल्याणी से भेंट हुई है। हाथ जोड़े हैं, सिर झुकाया है, शंभूनाथ बाबू का हृदय पिघला है। कल्याणी कहती है, मैं विवाह नहीं करूंगी।

मैंने पूछा, क्यों?

उसने कहा, मातृ-आज्ञा।

जब हो गया! इस ओर भी मातुल हैं क्या?

बाद में समझा, मातृ-भूमि है। वह संबंध टूट जाने के बाद से कल्याणी ने लड़कियों को शिक्षा देने का व्रत ग्रहण कर लिया है।

किंतु, मैं आशा न छोड़ सका। वह स्वर मेरे हृदय में आज भी गूंज रहा है- वह मानो कोई उस पार की वंशी हो- मेरी दुनिया के बाहर से आई थी, मुझे सारे जगत के बाहर बुला रही थी। और, वह जो रात के अंधकार में मेरे कान में पड़ा था, ‘जगह है,’ वह मेरे चिर-जीवन के संगीत की टेक बन गई। उस समय मेरी आयु थी तेईस, अब हो गई है सत्ताईस। अभी तक आशा नहीं छोड़ी है, किंतु मातुल को छोड़ दिया है। इकलौता लड़का होने के कारण मां मुझे नहीं छोड़ सकीं।

तुम सोच रहे होगे, मैं विवाह की आशा करता हूं। नहीं, कभी नहीं। मुझे याद है, बस उस रात के अपरिचित कंठ के मधुर स्वर की आशा- जगह है। अवश्य है। नहीं तो खड़ा होऊंगा? इसी से वर्ष के बाद वर्ष बीतते जाते हैं- मैं यहीं हूं। भेंट होती है, वही स्वर सुनता हूं, जब अवसर मिलता है उसका काम कर देता हूं- और मन कहता है- यही तो जगह मिली है, ओ री अपरिचिता! तुम्हारा परिचय पूरा नहीं हुआ, पूरा होगा भी नहीं, किंतु मेरा भाग्य अच्छा है, मुझे जगह मिल चुकी है।