Category Archives: Shayari

Valentine Day Shayari in hindi

Valentine Day Shayari in hindi

Valentine day shayari से अपने इस valentine day को बनाये special


1.Valentine Day Shayari in hindi:-

प्यार i love u बोल देने से नही होता,
रिश्ता निभाने के लिए एक दूसरे की फीलिंग को समझना जरूरी है। happy valentine dayValentine Day Shayari in hindi, happy valentine day


2. Valentine Day Shayari in hindi 2 :-

मैं तो चिराग हूँ , तेरे आशियाने का आज नही तो कल बुझ ही जाऊँगा।
आज शिकायत है , तुझे मेरे उजाले से कल अँधेरे में बहुत याद आऊँगा।। Happy Valentine dayValentine Day Shayari in hindi


3. Valentine Day Shayari in hindi 3:-

जिंदगी के किसी मोड़ पर , अगर बुरे लगने लगे तो जमाने को बताने से पहले हम को बता देना। 
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4. Valentine Day Shayari in hindi :-

एक अच्छा रिश्ता हवा की तरह होना चाहिए।
खामोश मगर हमेशा आसपास।
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5. Valentine Day Shayari in hindi 5:-

सख्त हाथों से छूट जाती है अंगुलिया अक्सर,
रिस्ते जोर से नही तमीज से थामे जाते हैं यारों।।
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6. Valentine Day Shayari in hindi 6:-

ये पलक बन्द हो जा , ख़्वाबों में कम से कम उसकी सूरत तो नजर आएगी।
इंतजार तो फिर सुबह से शुरू होगा , कम से कम रात तो सुकून से कट जायेगी।। 
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7. Valentine Day Shayari in hindi :-

मेरे पास तुम्हें छोड़ ने की लाखों वजह क्यों न हो , वादा करता हूँ कि तुम्हारे साथ रहने की एक वजह जरूर ढूंढ लूँगा।।
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8. Valentine Day Shayari in hindi 8 :-
जी भर के जिलों इन पलों को यारों।
क्या पता कल ये पल होना हो,
हों भी तो क्या पता , इन पलों में हम शामिल हो न हो।।
Happy valentine dayValentine Day Shayari in hindi, happy valentine day


9. Valentine Day Shayari in hindi 9 :-
न जाने क्यों वो हमसे मुस्कुरा के मिलते हैं , अपने दिल के सारे गम छुपा कर मिलते हैं।
वो जानते है शायद आँखे झूट नही बोलती , शायद इसलिए वो हमसे नजर झुका कर मिलते हैं।
Happy valentine dayValentine Day Shayari in hindi , happy valentine day
10. Valentine Day Shayari in hindi 10 :-

दिल दुखाने की आदत नही हमारी।
हम तो हमेशा प्यार से पेश आते हैं।।
अंदाज तो जनाब आज कल आप के बदले बदले हैं , जो बिना बात किये ही चले जाते हैं।।
Happy valentine day



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desh bhakti kavita on 26 january

desh bhakti kavita on 26 january

Desh bhakti kavita in hindi on 26 January आपके साथ शेयर कर रहे हैं जो आपको देश भक्ति के रंग में रंग देगी।


Atal bihari bajpayee ji ki kavitayen:-

बाधाएं आती हैं आएं

घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।

कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।।

Kumar vishvas kavita -:

दौलत ना अता करना मौला, शोहरत ना अता करना मौला
बस इतना अता करना चाहे जन्नत ना अता करना मौला
शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो।।

बस एक सदा ही सुनें सदा बर्फ़ीली मस्त हवाओं में
बस एक दुआ ही उठे सदा जलते-तपते सेहराओं में
जीते-जी इसका मान रखें
मर कर मर्यादा याद रहे
हम रहें कभी ना रहें मगर
इसकी सज-धज आबाद रहे
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो।।

गीता का ज्ञान सुने ना सुनें, इस धरती का यशगान सुनें
हम सबद-कीर्तन सुन ना सकें भारत मां का जयगान सुनें
परवरदिगार,मैं तेरे द्वार
पर ले पुकार ये आया हूं
चाहे अज़ान ना सुनें कान
पर जय-जय हिन्दुस्तान सुनें
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो।।
फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
 मुल्क से इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो।।
अगर पसंद आएं तो share करें।
धन्यवाद! जय हिंद

republic day shayari in hindi

republic day shayari in hindi 

Hi  दोस्तों , पहले तो आप सभी को republic day की advance में शुभकामनाएं। इस पोस्ट में कुछ बेस्ट शायरी और कविताओं को शेयर कर रहा हूँ । उम्मीद है आपको पसंद  आयेगीं। 

republic day shayari in hindi  -:

प्यार करना है तो अपने देश से कर,
सीमा पर जा दुश्मन की गोली से मर,
प्यार करना है तो अपने बूढ़े माँ बाप से कर, जो की तेरा फर्ज है।
प्यार करना है तो अपनी देश की मिटटी से कर, जिसका तुझ पर कर्ज है।।
जिस दिन तू मेरी बात समझ जायेगा , उस दिन कोई मजनू लैला पर नही सेदा होगा,
हर कोख से सिर्फ भगत सिंह पैदा होगा।।
जय हिन्द जय भारत

republic day shayari in hindi, deshbhakti kavita , poem

Deshbhakti shayari :-

फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
मुल्क से इश्क़ करना खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो।।
जय हिंद जय भारत

Desh bhakti kavita :-

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।
जय हिंद जय भारत

Kumar vishavash best desh bhakti kavita :-

होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो :-

दौलत ना अता करना मौला, शोहरत ना अता करना मौला
बस इतना अता करना चाहे जन्नत ना अता करना मौला
शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
बस एक सदा ही सुनें सदा बर्फ़ीली मस्त हवाओं में
बस एक दुआ ही उठे सदा जलते-तपते सेहराओं में
जीते-जी इसका मान रखें
मर कर मर्यादा याद रहे
हम रहें कभी ना रहें मगर
इसकी सज-धज आबाद रहे
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
गीता का ज्ञान सुने ना सुनें, इस धरती का यशगान सुनें
हम सबद-कीर्तन सुन ना सकें भारत मां का जयगान सुनें
परवरदिगार,मैं तेरे द्वार
पर ले पुकार ये आया हूं
चाहे अज़ान ना सुनें कान
पर जय-जय हिन्दुस्तान सुनें
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो।।
Atal bihari ji ki desh bhakti kavita poem :-

कदम मिलाकर चलना होगा :-

बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।।

Atal bihari ji ki deshbhakti kavita poem :-

 मौत से ठन गई ! :-

मौत से ठन गई।
खून क्यों सफेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है।
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई।
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता।
बात बनाएं, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है,
रावी की शपथ न पूरी है॥
जिनकी लाशों पर पग धरकर
आज़ादी भारत में आई,
वे अब तक हैं खानाबदोश
ग़म की काली बदली छाई॥
कलकत्ते के फुटपाथों पर
जो आंधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के
बारे में क्या कहते हैं॥
हिंदू के नाते उनका दु:ख
सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो
सभ्यता जहां कुचली जाती॥
इंसान जहां बेचा जाता,
ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियां भरता है,
डालर मन में मुस्काता है॥
भूखों को गोली नंगों को
हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कंठों से जेहादी
नारे लगवाए जाते हैं॥
लाहौर, कराची, ढाका पर
मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है
ग़मगीन गुलामी का साया॥
बस इसीलिए तो कहता हूं
आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊं मैं?
थोड़े दिन की मजबूरी है॥
दिन दूर नहीं खंडित भारत को
पुन: अखंड बनाएंगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक
आज़ादी पर्व मनाएंगे॥
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से
कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएं,
जो खोया उसका ध्यान करें॥
आज़ादी का दिन मना,
नई ग़ुलामी बीच;
सूखी धरती, सूना अंबर,
मन-आंगन में कीच;
मन-आंगम में कीच,
कमल सारे मुरझाए;
एक-एक कर बुझे दीप,
अंधियारे छाए;
कह क़ैदी कबिराय
न अपना छोटा जी कर;
चीर निशा का वक्ष
पुनः चमकेगा दिनकर।
दो दिन मिले उधार में
घाटों के व्यापार में
क्षण-क्षण का हिसाब लूं या निधि शेष लुटाऊं मैं?
राह कौन सी जाऊं मैं ?

Subhdra kumari chouhan ki desh bhakti kavita poem :-

खूब लड़ी मर्दानी थी :-

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
‘नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार’।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

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