किसी भी चीज को लेकर ख़ुश होना एक स्वाभाविक बात हैं। हमें नई नई बातों को जानने की इच्छा होती हैं। लेकिन यदि यही चंचलता गलत कामों के लिए हो तो वह हमें हानि पहुँचती हैं। इसलिए अधिक चंचलता अच्छी नहीं होती।
बच्चों में यह चंचलता अधिक होती हैं। लेकिन उसका कोई गलत उद्देश्य नहीं होता। इसलिए उन्हें चंचल या फिर शरारती कहा जाता हैं। यदि इंसान में चंचलता अधिक होती हैं तो उसका परिणाम गलत निकलता हैं।
अधिक चंचलता अच्छी नहीं
और जब अच्छे मन से सोच समझ कर, किसी काम को किया जाये तो उसका परिणाम हमेशा सही होता हैं और हमें खुशी भी मिलती हैं। आपको पता होगा की ऐसी चंचलता और उत्साह। स्वभाविक रूप से कुछ ज्यादा ही देखने को मिलती हैं।
एक बार की बात हैं। एक किसान अपना घर बनाने के लिए जंगल से कुछ लकड़ी लाने गया। वहाँ जाकर देखा की नीचे एक भी लकड़ी नहीं गिरी थी। वह एक पेड़ पर चढ़ा और उस पेड़ के एक मोटी टहनी को आरी से काटने लगा।
टहनी काफ़ी मजबूत थी, इसलिए उसे काटने में काफ़ी समय लग रहा था। उसे काटते काटते दोपहर हो गई थी। खाने का समय हो गया था किसान ने सोचा की आधी टहनी तो काट ही दिया हूँ बाकी के बचे हुए टहनी को खाना खाने के बाद काटूंगा।
उसने घर जाने से पहले लकड़ी का एक छोटा सा कील लेकर उस कटे हुए आधा टहनी के भाग में ठोंक दिया। ताकि वे दोनों भाग आपस में न मिल जाये। काटा गया भाग अलग अलग रहने पर दुबारा आरी लगाने में आसानी होगी।
कील ठोंकने के बाद वह अपने घर खाना खाने चला गया। उसी जंगल में एक पेड़ पर बैठा बंदर यह सब देख रहा था। किसान के घर जाते ही वह पेड़ से उतरकर उस टहनी के पास आया और उस पर चढ़कर उछल-कूद करने लगा।
तभी उसकी नजर लकड़ी के बीच में लगी उस कील पर पड़ी। फिर क्या था वह शरारती बंदर उसे पकड़कर हिलाने लगा। बहुत कोशिश करने के बाद भी वह कील उससे नहीं हिली। पर फिर भी उसने हार नहीं मानी।
वह बार बार उसे हिलता और उखाड़ने का प्रयास करता। फिर एक बार उसने पूरा जोर लगाया तो कील बाहर निकल आयी। लेकिन उसकी पूँछ उसी काटे गए भाग में चली गई।(अधिक चंचलता अच्छी नहीं होती)
जैसे ही कील बाहर आयी वैसी ही काटे हुए भाग आपस में जुड़ गए और बंदर की पूँछ उसी में दब गयी। अब बंदर पूँछ निकालने की कोशिश करने लगा, लेकिन उसकी पूँछ इतनी जोर से दबी हुयी थी की किसी भी तरह निकल नहीं सकी।
बंदर अब दर्द के मारे ची-ची करके चिल्लाने लगा। वह अब कुछ कर भी नहीं सकता तो वही चुप चाप बैठा रहा। थोड़ी देर बाद जब किसान आया तो उसने बंदर को वहाँ फसे हुए हालत में देखा।
किसान ने फिर किसी तरह बंदर के पूँछ को निकाला, लेकिन पूँछ के काफ़ी हिस्सा कट गया था। फिर उसे अपने घर ले जाकर उसके पूँछ पर हल्दी का लेप लगाकर पट्टी किया और फिर उसे जंगल में लाकर छोड़ दिया। बंदर को उसकी ज्यादा चंचलता का दंड मिल गया।
अवलोकन – inhindistory के द्वारा बताई गई, अधिक चंचलता अच्छी नहीं होती है, की कहानी आपको कैसी लगी हमें comment कर के जरूर बताये।