यह कहानी है ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी के बारे में। ( Na Rahega Baans Na Bajegi Bansuri ) देवताओं और असुर के बीच में हमेशा युद्ध चला करता था। क्योंकि देवता स्वर्ग पर रहते थे, और असुर चाहते थे, कि देवताओं से स्वर्ग छीन लिया जाये ताकि असुर वहां पर रख सकें।
देवता अमर हैं, उनकी मृत्यु नहीं होती। किंतु असुर की मृत्यु हो जाती है। बड़े-बड़े पराक्रमी असुर भी युद्ध में मर जाते हैं। इसलिए असुर हमेशा इस बात का प्रयास करते रहते हैं, कि उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त हो जाए, ताकि वह कभी ना मरे।
किंतु अमर होने का वरदान, हर किसी को नहीं दिया जा सकता है। इस कारण असुर दिन-रात तपस्या करके यह वरदान हर हाल में प्राप्त करना चाहते हैं। ताकि उनकी मृत्यु ना हो।
जब भगवान उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान देने आते हैं, तो वह अमर होने का वरदान मांगते हैं। मगर भगवान अमर होने का वरदान सबको नहीं दे सकते, इस कारण भगवान असुर को यह वरदान देने से मना कर देते हैं।
मगर असुर भगवान के सामने अपने मरने की ऐसी ऐसी शर्ते रखते हैं जोगी कभी पूरी नहीं हो सकती। इसलिए कहा जाता है। ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी।
1.कहानी ( Na Rahega Baans Na Bajegi Bansuri )
इसी प्रकार एक बार हिरण्यकशिपु ने भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मांगा था। जो कि भगवान ब्रह्मा यह वरदान देने से आनाकानी कर रहे थे। तब हिरण्यकशिपु ने कहा कि मुझे यह वरदान दीजिए।
मेरी मृत्यु ना दिन में हो, ना रात में हो। ना धरती में हो, ना ही आकाश में हो। ना ही मुझे कोई मनुष्य मार सके, और ना ही कोई जानवर। ना ही कोई अस्त्र मार सके, ना कोई शास्त्र। खुद भगवान ब्रह्मा द्वारा बनाए गए किसी भी प्राणी से मेरी मृत्यु ना हो सके।
तब भगवान ने उसे तथास्तु कह के, यह वरदान दे दिया। उसके बाद हिरण्यकशिपु खुद को अमर मानने लगा। क्योंकि उसने जो शर्ते भगवान के सामने रखी थी, उसका पूरा होना लगभग नामुमकिन ही था।
इस कारण वह अपने आपको अमर मानने लगा था। उसका कहना था। ना यह, शर्ते कभी कोई होगी। ना ही वह कभी मरेगा। इसलिए कहा जाता है। ” ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी ” परंतु मृत्यु तो सबकी होनी है।
जब हिरण्यकशिपु का अत्याचार इस धरती पर बहुत बढ़ गया, तब स्वयं भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर, उसका वध किया। जब भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में थे, तो वह ना तो मनुष्य थे, नाही जानवर।
उनका आधा सर इंसान का था, और आधा शरीर जानवर का। उन्होंने हिरण्यकशिपु को संध्याकाल में मारा। उस समय ना तो दिन था, ना रात थी और ना ही उन्होंने घर के अंदर मारा, ना ही घर के बाहर। घर की चौखट पर मारा।
ना ही उन्होंने किसी अस्त्र का प्रयोग किया, किसी शास्त्र का। उन्होंने अपने नाखुनो से हिरण्यकशिपु की छाती फाड़ दी। इस प्रकार हिरण्यकश्यप की सारी शर्ते भी पूरी हो गई और हिरण्यकशिपु भी मर गया।
2. कहानी
एक छोटे से गांव में, सुखी और समृद्धि से भरी जीवनशैली बिताने वाले लोग रहते थे। लेकिन, गांव में एक बात थी जो उन्हें परेशान कर रही थी – वह थी, एक शराब की दुकान। इस दुकान की वजह से गांव के युवा लोग नशे में पड़ते थे और उनका जीवन बिगड़ रहा था।
गांव के कुछ जागरूक नागरिकों ने, इसके निवारण के लिए सभा का आयोजन किया और इस मुद्दे पर चर्चा की। उन्होंने सभी गांववालों को एकजुट होने की अपील की और शराब की दुकान को बंद करने के लिए आवाज उठाई।
सभा में शराब की दुकान का मालिक भी मौजूद था। वह धन की मोहमाया में इतना डूब चुका था कि उसे लग रहा था। शराब की लत की वजह से गावं वाले उस दुकान को बंद नहीं होने देंगे।
पर गांव के लोगों ने मिल के उस दुकान को बंद करवाने का निर्णय लिया। जब दुकान का मालिक राजी नहीं हुआ तो वहां के लोगो ने साथ मिलकर शराब की दुकान को तोड़ दिया। साथ ही उस दुकान के सामान को बाहर निकालकर उसमे आग लगा दिया।
जिससे उसकी पूरी संपत्ति नष्ट हो गई। इस क्रिया ने गांव के लोगों को एक महत्वपूर्ण संकेत दिया कि, ना रहेगी शराब की दुकान, ना ही लोग शराब पिएंगे। इसे ही कहा जाता है। ” ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी ”
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