भूत का छलावा
इस पोस्ट में हम एक भूत की कहानी पढ़ेंगे जिसका नाम है भूत का छलावा रमेश जो की मजदूरी का काम करता था। एक दिन वो पास के गांव में मजदूरी के लिए गया। काम ख़त्म होने के बाद वो शाम के समय अपने घर के लिए चल दिया।
पर उस दिन अचानक से बारिश होने के कारण रमेश कुछ देर उसी गांव में रुक गया। फिर जब बारिश बंद हुई तो रमेश वापस अपने घर की तरफ चल दिया मगर तब तक अँधेरा हो चूका था।
जल्दी घर पहुंचने के चक्कर में रमेश ने खेतो के बीच बने रास्ते से जाने का निश्चय किया। काफी समय चलने के बाद रमेश अपने गांव के नजदीक आ चूका था।
गांव के में पहुंचने के लिए एक बगीचे से हो के जाना पड़ता था। जैसे ही रमेश उस बगीचे में पहुंचा वैसे ही उसे एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। यह सब उस भूत का छलावा था।
रमेश से सोचा इतनी रात को इस बगीचे में बच्चा कैसे आ सकता है। उसने बच्चे को ढूंढ़ने के लिए इधर उधर देखा पर कोई नहीं दिखा। तब उसे ख्याल आया की हो सकता है।
कोई औरत किसी काम से बगीचे में अपने बच्चे को साथ ले के आई होगी इसलिए वो अपने घर की तरफ चल दिया। पर जैसे जैसे वो आगे बढ़ते जा रहा था बच्चे के रोने की आवाज उसे और जोरो से सुनाई देने लगी।
रमेश ने फिर सोचा हो सकता है वो औरत किसी परेशानी में फस गई होगी मुझे मदद करनी चाहिए फिर जिधर से आवाज आ रही थी रमेश उधर ही जाने लगा कुछ दूर पहुंच के उसने देखा एक 6 – 7 महीने का बच्चा एक पेड़ के नीचे लेटा हुआ है।
और वही रो रहा है। रमेश तुरंत उस लड़के के पास पहुंचा और जोर जोर से आवाज देने लगा। कौन है यहाँ पे ? किसका बच्चा है ये ? मगर किसी ने आवाज नहीं दी। ये भूत का छलावा था इसे रमेश समझ नहीं पाया।
रमेश ने सोचा शायद इसकी माँ यही आस पास कही बेहोश हो गई होगी इसलिए बोल नहीं रही। फिर रमेश ने पूरे बगीचे को छान मारा मगर उसे वहां पे कोई भी नहीं दिखा। अब रमेश ने गुस्से में चिल्लाया कौन यहाँ बच्चा रख के चला गया है।
मगर किसी की आवाज नहीं आने के कारण रमेश ने वही रुकने का फैसला किया की देखता हु कौन यहाँ अपने छोटे से बच्चे को रख के चला गया है। थोड़ी देर में तो आ ही जायेगा फिर उसे डाटूंगा।
भूत का छलावा
मगर काफी देर बीत जाने के बाद भी उस बच्चे को लेने के लिए वहां पे कोई नहीं आया। अब रमेश समझ चूका था की, शायद कोई जानबूझ के अपना बच्चा यहाँ पे छोड़ के गया है।
तब रमेश ने उस बच्चे को गोद में उठाया और घर की तरफ चलने लगा। रमेश रास्ते भर चिल्लाते हुए जा रहा था। कैसे कैसे लोग रहते है यहाँ पे अपने ही बच्चे को अकेला छोड़ के चले गए। गुस्से से वो पूरे रस्ते बड़बड़ाते हुए जा रहा था।
तभी रमेश को ऐसा लगा की उसे चलने में दिक्क्त हो रही है क्यों की बच्चा बहुत भारी लग रहा था। मगर रमेश घर पहुंचने की जल्दी में और तेज चलने लगा की काफी रात हो चुकी है जल्दी इस बच्चे को ले के घर पंहुचा जाये।
कुछ कदम चलने के बाद रमेश को ऐसा महसूस हुआ जैसा बच्चे का वजन बहुत ही ज्यादा बढ़ चूका है और वो बच्चे की उठा के चल नहीं पा रहा था।
जैसे ही रमेश ने बच्चे की तरफ देखा। उस बच्चे की एक आंख बाहर की ओर लटक रही थी और उसके पैर जमीन तक टच होने ही वाले थे। और बच्चा रमेश को देख के हस रहा था। रमेश इतना देखते ही डर के मारे उस बच्चे को फेक दिया।
फेकने के बाद वो बच्चा जमीन पे नहीं गिरा बल्कि जमीन से थोड़ा ऊपर ही लटकने लगा और जोर जोर से हस्ते हुए बोला क्या हुआ मुझे अपने घर नहीं ले जायेगा। तू पूछ रहा था ना की मैं किसका बच्चा हुआ थोड़ा देर और गोद में रखता तब तुझे बताता किसका बच्चा हुआ मै।
इतना सुनते ही रमेश वहां से तुरंत भागने लगा और अपने घर पंहुचा। मगर उसने ये बात किसी को नहीं बताई ताकि घर वाले भी न डर जाये। जैसे तैसे उसने खाना खाया, और सोने लगा।
अभी रमेश को हल्की नींद लगी ही थी की, फिर घर के बाहर से उस बच्चे के रोने की आवाज आने लगी। रमेश ने डर के मारे उठ गया। धीरे धीरे वो आवाज और तेज होने लगी।
उसने अपने घर वालो को जगाया और सबको उस घटना के बारे में बताया। फिर उसने कहा वो बच्चा अभी भी घर के बाहर रो रहा है। मगर बच्चे के रोने की आवाज किसी को सुनाई नहीं दे रही थी वो आवाज बस रमेश को ही आ रही थी यह सब उस भूत का छलावा था।
उसके बाद रमेश के घर वालो ने गावं के ही एक बाबा को बुलाया जिन्होंने रमेश का इलाज किया। और उसके हांथो में धागे बांधे जिसके बाद रमेश को उस बच्चे के रोने की आवाज आनी बंद हो गई। फिर रमेश उस रात आराम से सो पाया।
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