यह कहानी है एक शंकर नाम के आदमी के जिसने अपने अक्ल का उपयोग (Akal Ka Upyog) करके अपने मेंहनत की कमाई के पैसो को बचाया। गंगा नदी के किनारे एक गांव था उस गांव में शंकर नाम का एक आदमी रहता था।
उसका छोटा सा परिवार था। वह दूसरे गांव में घूम घूम कर कपड़ा बेचा करता था और अपना परिवार चलाता था। वह शरीर और दिमाग़ से बहुत मजबूत और हट्टा कट्टा था।
Akal Ka Upyog
एक दिन शंकर सुबह सुबह ही कपड़ा बेचने के लिए निकल गया। ठंडी का दिन था और बहुत ओश गिर रहा था। उसने दिन भर गांव में घूम कर कपड़ा बेचा। उस दिन रोज के अलावा ज्यादा कपड़ा बेचा था और कमाई भी बहुत हुई थी।
वह मन ही मन में बहुत ख़ुश हो रहा था की मेरा आज का दिन अच्छा रहा। शाम हो गई थी और वह अपने घर जाने लगा। घर जाते वक्त अंधेरा होने लगा तो वह डरने लगा की रास्ते में कोई चोर मेरा सारा पैसा ले सकता। तो उसने सारे पैसो को एक छोटे से कपड़े में बांधा और अपने बगल में दबा लिया। और ठण्ड से बचने के लिए एक कम्बल ओढ़ लिया।
वह चुपचाप रास्ते से घर की ओर जाने लगा। कुछ दूर जाने के बाद अचानक उसे एक लुटेरे ने रोक लिया। लुटेरा अकेला था और शंकर से कमजोर और दुबला पतला था।
लेकिन उसके पास बन्दूक था इसलिए शंकर उसका कुछ नहीं कर सकता था। लुटेरा शंकर के नजदीक आकर उसके सर पर बन्दुक रखकर बोला- जो कुछ भी तुम्हारे पास हैं सब मुझे दे दो, नहीं तो मैं अभी तुम्हे गोली मार दूंगा।
यह सुन कर शंकर ने लुटेरा को सारा पैसा का पोटली दे दिया और बोला – ठीक हैं यह सब पैसा तुम रख लो, लेकिन कुछ निसानी दे दो की तुम मेरे सारे पैसे ले लिए हो।
नहीं तो मैं अपने घर पहुंच कर अपने बीबी से क्या कहूंगा, वो तो यही समझेगी की सारा पैसा हैं जुए में उड़ा दिए होंगे। लुटेरा बोला – ठीक हैं बोलो क्या करू ? तब शंकर बोला – तुम एक काम करो, अपने बन्दुक की गोली से मेरे टोपी में एक छेद कर दो ताकि मेरी बीबी को लूट का यकीन हो जाये।
लुटेरे ने बोला ठीक हैं बस इतनी सी बात हैं न, लो अभी कर देता हूँ। और बड़ी शान से अपनी बंदूक चलाकर उसके टोपी में छेद कर दिया। अब लुटेरा वहाँ से जाने लगा, तो फिर शंकर बोला – सुनो मेरा एक काम और कर दो भाई!
जिससे मेरी बीबी को पक्का यकीन हो जाये की लुटेरों के गैंग ने मिलकर लुटा हैं वरना मेरी बीबी मुझे कायर समझेगी। तुम इस कम्बल में भी आठ दस छेद कर दो।
लुटेरे ने हस्ते हुए कहा – तू कितना डरता हैं रे अपने बीबी से और इतना बोल कर खुशी खुशी कम्बल में गोलिया चलाकर छेद कर दिया। इसके बाद शंकर ने स्वेटर पहन रखा था उसको भी निकाल लिया और उससे बोला – भाई इसमें भी एक दो छेद कर दो।
ताकि मेरे गांव वालो को पता चल सके की मैं तुम लोगो के साथ बहादुरी से लड़ाई किया था, नहीं तो वो लोग मुझे डरपोक समझेंगे। लुटेरा बोला – बस कर अब! इस बंदूक में गोलिया भी खत्म हो गयी हैं।
शंकर इतना सुनते ही लुटेरे के आगे बढ़ा और उसे अपने बाहो में दबोच कर उठा कर पटक दिया और बोला – यही तो मैं चाहता था। तुम्हारी ताकत सिर्फ ये बंदूक थी।
अब ये भी खाली हैं। अब तु मेरे साथ कुछ नहीं कर सकते हैं। चल जल्दी से चुपचाप मेरा पैसा मुझे वापस दे दे नहीं तो तू सोच भी नहीं सकता की मैं क्या कर सकता हूँ तेरे साथ।
शंकर की बात सुनकर लुटेरे की डर के मारे हालत ख़राब हो गई। और सोचा इसको इसके पैसे वापस नहीं दिया तो ये मुझे यही जान से मार दे देगा ।और उसने तुरंत ही सारे पैसे शंकर को दे दिया। और अपनी जान बचाकर वहाँ से भाग गया।
शंकर ने लुटेरे से पैसा लेकर खुशी खुशी अपने घर चला गया। और घर जाकर अपने चालाकी का किस्सा अपने बीबी और गांव वालो को बताया।
शंकर की बाते सुनकर सारे गांव वाले बोले – आज तुम्हारी ताकत तब काम आयी जब तुम अपने अक्ल का उपयोग (Akal Ka Upyog) सही जगह पे किया। फिर उसको शाबाशी दी और उसपर गर्व करने लगे।
सारांश – अक्ल का उपयोग (Akal Ka Upyog) की कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है की हमें सिर्फ ताकत के भरोसे ही नहीं रहना चाहिए। ताकत के साथ अक्ल का उपयोग भी बहुत ज्यादा जरुरी है।
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