यह कहानी है बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे ( Billi Ke Gale Mein Ghanti ) के बारे में। किसी भी समस्या का हल बड़े ही आसानी से निकला जा सकता है, मगर उस समस्या को हल करने में अगर जान की बाजी लगानी पड़े तो कोई भी तैयार नहीं होता।
1 कहानी ( Billi Ke Gale Mein Ghanti Kaun Bandhe )
एक बड़े से घर में बहुत सारे चूहे रहते थे। वे सारे आपस में मिल कर शांति पूर्व अपनी जिंदगी मजे से गुजार रहे थे। तभी एक दिन उस घर में एक बिल्ली आई उसने देखा की यहाँ तो बहुत सारे चूहे है।
बिल्ली ने सोचा अगर मैं भी इस घर में रहु तो मुझे खाने की कोई कमी नहीं होगी, इसलिए बिल्ली भी अब वहा रहने लगी। बिल्ली को जब भी मौका मिलता वो किसी चूहे को पकड़ कर उसे मार कर खा जाती।
देखते ही देखते चूहों की संख्या कम होने लगी। अब उस बिल्ली के डर के कारन सारे चूहे अपनी जिंदगी अच्छे से जी नहीं पा रहे थे। साथ ही बिल्ली का आतंक इतना बढ़ गया था की सारे चूहे परेशान हो गए थे।
इस समस्या के निदान के लिए चूहों ने एक सभा बुलाई। उस सभा में बिल्ली के आतंक से बचने के ऊपर विचार किया जाने लगा। सबसे अपनी अपनी राय बताई। उनमे से एक राय यह भी था की बिल्ली के गले में एक घंटी बांध दी जाये।
जिससे की जब बिल्ली आएगी तो घंटी बजेगी और सारे चूहे घंटी की आवाज सुन के सतर्क हो जायेंगे, और अपनी जान बचा के अपने बिल में भाग जायेंगे। वहा बैठे सारे चूहों को यह विचार बहुत अच्छा लगा।
बस फिर क्या था। तुरंत ही घंटी का इंजाम भी कर लिया गया, और एक अच्छी सी घंटी चूहों ने ले आई। अब बात यह थी की आखिर बिल्ली के गले में वो घंटी कौन बांधेगा।
सारे चूहों से पूछा गया, पर वहा उपस्थित कोई भी चूहा बिल्ली के गले में घंटी बांधने को तैयार नहीं हुआ। सभी यह जानते थे की जो भी उस बिल्ली के गले में घंटी बांधने जायेगा, बिल्ली उसे खा जाएँगी।
अंत में किसी ने भी बिल्ली के गले में घंटी नहीं बाँधी, और चूहों की समस्या ज्यो की त्यों बानी रही। बिल्ली रोज किसी न किसी चूहे को मार के खा जाती और चूहे वहा डर के ही अपनी जिंदगी जीने लगे।
2 कहानी
ऐसे ही एक बहुत प्रचलित घटना है। इस घटना का वर्णन मिलता है समुन्द्र मंथन से। जब देवता और असुर दोनों ही मिल के, अमृत पाने के लिए समुन्द्र मंथन कर रहे थे, तो कई दिनों के मंथन के पश्चात उसमे से हलाहल विष निकला।
उस विष से इतनी ज्यादा भीषण ज्वालायें निकल रही थी की, ऐसा लग रहा था, तीनो लोक का सर्वनाश हो जायेगा। उसे देखकर देवता और दानव दोनों ही घबरा गए। वे लोग एक जगह एकत्रित हो कर विचार विमर्श करने लगे।
की आखिर इस विष को शांत कैसे किया जाये। अगर ये विष शांत नहीं हुआ तो तीनो लोग का अंत हो जायेगा। परन्तु उस विष को शांत करने का उपाय किसी के पास नहीं था।( Billi Ke Gale Mein Ghanti )
उस विष को शांत करना तो दूर, उसके पास भी किसी के जाने की हिम्मत नहीं थी। यही बात थी की आखिर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। अंत में ब्रम्हा जी ने देव और दानवो को, शिव जी से मदद मांगने भेजा।
जब सारे देव और दानव, महादेव जी के पास पहुंचे, फिर उन्होंने ने अपनी समस्या बताई, और बोले बाबा से तीनो लोक की रक्षा करने की प्राथना की। तब भगवन ने उनकी प्राथना सुनी।
और भगवान शिव ने उस विष को पी लिया। और उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। जिसके कारन ही उनका गला नीला पड़ गया। तब से ही बोले बाबा को नीलकंठ भी कहा जाता है।
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