इस लेख में हम एक ( Lalach Buri Bala Hai ) ” लालच बुरी बला है ” पे एक कहानी पढ़ेंगे। यह एक ऐसी आदत है की जब किसी आदमी के अंदर लालच की भावना समा जाती है। तो उसके सुख और संतुष्टि को भी खत्म कर देती है। इसलिए हमें जीवन मे कभी भी लालच नहीं करनी चाहिए।
कभी कभी तो हम लालच के चक्कर मे ऐसा फस जाते है की हमारे पास जो कुछ भी अच्छा चीज होता है उसे भी खो देते है। इसलिए हमारे पास भगवान की देन से या हमारी किस्मत और मेहनत से जो कुछ भी है उसी से अपने जीवन मे ख़ुश रहना चाहिए।
कहानी – लालच बुरी बला है ( Lalach Buri Bala Hai )
बहुत पुराने समय की बात है। एक बहुत घना और सुन्दर जंगल था। उसमे बहुत सारे पशु पक्षी और जानवर रहते थे। वे सब मिलजुल कर और बड़े प्यार से रहते थे।
समय समय पर एक दूसरे की मदद भी कर देते थे। मतलब किसी भी पशु पक्षी और जानवर के अंदर कोई भी नफरत की भावना नही थी।
उस जंगल मे जंगल का राजा शेर भी रहता था। वह बहुत बलवान था और सारे जंगल मे रहने वाले पशु पक्षी पर अपना हुकुम चलता था। और अपने डर का आतंक पुरे जंगल मे फैला रखा था।
अगर गलती से कोई भी जानवर कुछ कह दे, वह बिना कुछ सोचे समझे उसे मारकर अपना भोजन बना लेता था। इसलिए सारे जानवर शेर के डर से उसकी बाते सुनते थे, वह जो कुछ भी करने को कहता वे सब डर के मारे करते थे। एक एक दिन ऐसे ही बीतते गया।
कुछ सालो बाद शेर बूढा हो गया। और वह कमजोर हो गया। वह इतना कमजोर हो गया था की उसे चलने फिरने भी दिक्क़त हो रही थी। अपना दोनों समय का भोजन भी नहीं जुटा पता था।
भूख के मारे दिन भर तड़पता रहता था। पेट भर का खाना भी नहीं मिलता था दूसरे जानवर जब भोजन करते थे और जो कुछ थोड़ा बहुत बच जाता था उसी को खाकर वह अपना पेट भर लेता था।
उस शेर ने सोचा ऐसा कब तक चलेगा। ऐसा ही चलता रहा तो बहुत जल्दी ही मेरी मृत्यु हो जाएगी। शेर ने ये भी सोचा की इस जंगल मे जितने जानवर है वो मेरे डर के मारे मेरे सामने आने पर डरते थे लेकिन आज मेरे सामने से निकल जाते है और मै कुछ नहीं कर पाता हूँ।
शेर यह सब सोच सोच कर उदास हो रहा था। तभी उसके मन मे एक विचार आया। उसने किसी से सुना था की जब किसी इंसान या फिर किसी जानवर की शरीर बूढा हो जाता है और वो किसी भी काम करने के लायक नहीं रहता है तब उसे अपना दिमाग़ से काम लेना चाहिए।
शेर ने सोचा चलो ऐसा ही कुछ करता हूँ। दो चार दिन बीत गया। शेर ऐसे ही उदास होकर जंगल घूम रहा था तो कुछ दूर पर उसे एक चमकता हुआ चीज दिखाई दिया। शेर जब उसके सामने जाकर देखा तो उसे वह हीरे की अंगूठी थी।
शेर मन ही मन मे ख़ुश हुआ और बोला मिल गया उपाए। अगर ये अंगूठी आज काम आ जाएगी तो आज मुझे भरपेट भोजन करने को मिलेगा। शेर उस अंगूठी को लेकर एक नदी किनारे चला गया, जहा लोग हमेशा आते जाते थे।
शेर पहले नदी मे स्नान किया और अपने शरीर मे चन्दन के लेप लगाया और एक अच्छा सा जगह देख कर बैठ गया और हरे राम हरे कृष्णा का जप करने लगा। आने जाने वाले लोग शेर को देख कर चौक रहे थे।
वह लोगो से कह रहा था, की ये अंगूठी मुझे भगवान विष्णु ने मुझे वरदान मे दिया है और ये मेरे किसी काम का तो नहीं है। और जो लोग अपने आप को भगवान का सच्चा, दानवीर भक्त समझता है वो इसे ले जा सकता है।
लोगो ने शेर की बात सुन रहे थे और अंगूठी को बहुत देख रहे थे वह बहुत कीमती भी लग रहा था। लेकिन इतना भी कीमती नहीं था की वे लोग शेर जैसे खतरनाक जानवर पर भरोसा कर लेते।
उसी रास्ते से एक मोहन नाम का आदमी किसी दूसरे शहर से पैसे कमा कर अपने घर जा रहा था। उसने भी शेर की बाते सुना और अपने मन ही मन मे बोला अगर इस अंगूठी को मै ले लू तो पूरी जिंदगी मै एसो आराम से रहूँगा।
मुझे किसी और शहर मे जाकर पैसे कमाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। लेकिन इस शेर तो बहुत ही ख़तरनाक लग रहा है। कही मुझे ये अपना भोजन ना बना ले। लेकिन मै किसी किताब मे पढ़ा था, बिना कष्ट किये कभी भी धन की प्राप्ति नहीं होती है।
मोहन अंदर से तो बहुत डरा हुआ था की शेर कही उसको खा न जाये लेकिन फिर भी हिम्मत बनाया और उसके पास जाकर पूछा – तुम तो वैसे भी एक खतरनाक जानवर हो, और जंगल के सारे जानवरो को मार कर खा जाने वाले प्राणी हो और तुम्हारे सामने जो भी आता है उसे तुम छोड़ते भी नहीं हो, फिर तुम्हारा विश्वास कैसे किया जा सकता है।
शेर ने कहा – तुम्हारा सवाल तो बहुत ही अच्छा है, क्योकि मै एक खतरनाक जानवर तो हूँ ही और मै पुरे जंगल के जानवरो को मार कर खा जाता हूँ, कितने सारे जीव जंतु को भी नुकसान भी पहुंचाया है मैंने, लेकिन एक रात भगवान विष्णु मेरे सपने मे आये और बोले – अब कितना अत्याचार करोगे इन मासूम जीव जंतुओ पर, अब तुम्हारा बुढ़ापा आ गया, तुम्हे धर्म – कर्म, पूजा -पाठ दान- पुण्य करना चाहिए।
इसलिए मै अब अच्छे कर्म करने लगा हूँ। मेरे पास इस अंगूठी के अलावा जो भी सोना चांदी हीरे मोती है उसे सब मै दान मे दे देना चाहता हूँ। मोहन जब शेर की इतनी बाते सुना तो वह बहुत ख़ुश हो गया बोला – मै यह अंगूठी लेने के लिए तैयार हूँ बताइये मुझे क्या करना होगा।
शेर मन ही मन मे बहुत ख़ुश हुआ और बोला चलो आज तो ये मेरे झांसे मे फ़स गया। उसने कहा पहले तुम्हे नदी मे स्नान करना होगा फिर मै तुम्हे कुछ ज्ञान की बाते बतऊँगा और फिर तुम ये हीरे की अंगूठी ले लेना।
मोहन ने शेर की बाते सुनी और फिर वो नदी मे स्नान करने चला गया। और एक दलदल मे फस गया। उसने बहुत निकलने की कोशिश की पर नहीं निकला।
फिर मोहन जोर जोर से चिलाने लगा बचाओ बचाओ। शेर मोहन को दूर से ही देख रहा था, और मौके के तलाश मे था। फिर उसके पास गया और बोला – अरे तुम तो दलदल मे फस गए हो, रुको मै तुम्हे निकलता हूँ।
शेर नदी मे गया और मोहन का गला दबोचते हुए कहा – अरे मुर्ख आदमी तुम्हे ये भी नहीं पता एक जानवर ये धर्म कर्म का काम नहीं कर सकता। ये सब धर्म कर्म पूजा पाठ तो इंसानो का काम है। मै तो एक जानवर हूँ। मेरा तो यही कर्म है की मै दुसरो का मांस खाऊ।
मै ये सब जाल तुम्हे अपना भोजन बनाने के लिए बिछाया था। शेर की बाते सुन कर मोहन जोर जोर से चिलाने लगा लेकिन उसे बचाने कोई नहीं आया और शेर उसे मार कर खा गया। इसलिए कहा जाता है, लालच बुरी बला है। ( Lalach Buri Bala Hai )
सीख – लालच बुरी बला है ( Lalach Buri Bala Hai ) यह कहानी से हमें यह शीख मिलती है की हमारे पास जो भी दौलत है और जितना भी है उतने मे ही ख़ुश रहना चाहिए। ज्यादा लालच करने से या बिना मेहनत से कमाया हुआ धन हमें हमेशा कष्ट ही देता है।