कहानी: पत्थर का दिल ( Patthar Ka Dil )
यह कहानी है Patthar Ka Dil के बारे में ,गंगापुर एक छोटा-सा शांत गाँव था, जो हरे-भरे खेतों और घने आम के बागों से घिरा हुआ था। इसी गाँव में रहता था बूढ़ा किसान, हरि। हरि अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव पर था, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी जवानी जैसी चमक बाकी थी। वह अकेला रहता था, उसकी पत्नी का कई साल पहले निधन हो गया था और उसका एकलौता बेटा शहर में नौकरी करता था।
हरि का एक छोटा-सा खेत था, जिस पर वह सब्जियाँ उगाकर अपना गुजारा करता था। उसके खेत तक जाने के लिए एक संकरा, पथरीला रास्ता था। उस रास्ते के बीचों-बीच एक विशालकाय पत्थर पड़ा हुआ था। कोई नहीं जानता था कि वह पत्थर वहाँ कब से पड़ा है। सभी उससे परेशान थे, लेकिन उसे हटाने की कोशिश कोई नहीं करता था।
एक दिन, हरि ने ठान लिया। उसने अपने पुराने हल को एक तरफ रखा और एक बड़ा-सा हथौड़ा उठाया। उसकी नजर उस विशाल पत्थर पर थी।
पड़ोसी किसान, मोहन, ने उसे देखा और हँसते हुए कहा, “अरे हरि काका! इतने सालों से ये पत्थर यहाँ पड़ा है। तुम्हारे जैसे बूढ़े आदमी से यह कैसे हटेगा? व्यर्थ की मेहनत कर रहे हो।”
हरि ने मोहन की तरफ देखा, एक मुस्कुराहट उसके चेहरे पर खेल गई। “बेटा, कोशिश करने में क्या हर्ज है? अगर आज नहीं हटा, तो कल हट जाएगा। कल नहीं तो परसों।”
इतना कहकर हरि ने हथौड़े से पत्थर पर जोरदार प्रहार किया। ‘टां-टां’ की आवाज़ गूँज उठी, लेकिन पत्थर पर जरा सी भी दरार नहीं आई। उस दिन वह थक-हारकर घर लौट आया।
अगले दिन फिर वही कोशिश। और अगले दिन भी। हफ्तों तक यही सिलसिला चला। हरि सुबह उठता, अपने खेत का काम निपटाता और फिर घंटों उस पत्थर पर हथौड़े से वार करता। गाँव वाले उसका मजाक उड़ाते। कुछ उसे पागल समझने लगे। लेकिन हरि अपने संकल्प पर अडिग था।
एक महीना बीत गया। एक शाम, जब हरि लगातार पत्थर पर प्रहार कर रहा था, तभी उसे लगा कि पत्थर ने हिलना शुरू कर दिया है। उसने अपनी पूरी ताकत एक जोरदार वार में लगा दी।
धड़ाम!
आवाज़ इतनी तेज थी कि आस-पास के लोग दौड़े चले आए। वह विशाल पत्थर दो टुकड़ों में बंट चुका था। सभी हैरान थे। मोहन की आँखें फटी की फटी रह गईं।
लेकिन पत्थर के टूटने के बाद जो नजारा था, वह और भी चौंका देने वाला था। पत्थर के नीचे से एक पुराना, मिट्टी से सना हुआ एक लोटा निकला। हरि ने उसे उठाया। वह बहुत भारी था। जब उसने उसे साफ किया, तो अंदर से चमकती हुई सोने की अशर्फियाँ निकलीं।
यह देखकर सभी के मुँह से आह निकल गई। वहाँ सन्नाटा छा गया। मोहन की हवा निकल चुकी थी। उसकी आँखों में अब मजाक नहीं, बल्कि पछतावा और ईर्ष्या थी।
हरि ने सोने की अशर्फियों को देखा और फिर चारों तरफ मौजूद गाँव वालों की ओर। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “देखा बच्चों! यही है ‘पत्थर का दिल’। जिसे तुम एक रुकावट समझते थे, उसी के अंदर से खजाना निकल आया।”
उसने आगे कहा, “मेहनत और हिम्मत कभी व्यर्थ नहीं जाती। ये अशर्फियाँ हम सब की हैं। इससे हम गाँव में एक नई कुआँ और स्कूल बनवाएंगे।”
उस दिन गंगापुर गाँव की तस्वीर बदल गई। हरि ने न सिर्फ एक बड़ी रुकावट को हटाया, बल्कि उसने सबको एक बड़ी सीख दी। लोगों ने उस दिन के बाद से कभी किसी काम को असंभव नहीं समझा।
Moral of the Story: कड़ी मेहनत, लगन और धैर्य कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। जीवन की सबसे बड़ी बाधाएं ही अक्सर सबसे बड़े आश्चर्य और अवसरों को छिपाए होती हैं। कभी हार मत मानो।