यह कहानी है जाति स्वभाव नहीं छूटता के बारे में। हम सभी जानते हैं की कुछ लोग ऐसे होते हैं की उनमे जन्म से ही अपने जाति की विशेषताएँ होती हैं। अब चाहे वो इंसान हो, या फिर कोई जानवर।
उनमे कभी भी बदलाव नहीं होता हैं। यदि कुछ बदलाव कर भी जाये तो वो ज्यादा देर तक नहीं टिकता हैं। वह कभी न कभी अपना भाव दिखा ही देता हैं।
जाति स्वभाव नहीं छूटता
किसी गांव में नरेश नाम का एक आदमी था। वह बहुत गरीब था। उसके पास चार बंदर थे। वह गांव में घूम-घूम कर बंदरो का खेल-तमासा दिखाता था और उससे जो भी पचास – सौ रूपये मिलते थे, उससे अपना घर चलाता था।
एक चीज बंदरों में हमेशा रहती हैं, और वो हैं दुसरो का नक़ल करने की। एक दिन नरेश ने उन बंदरों को नाचने की कला सिखाने का सोचा। फिर वह दूसरे दिन बाजार से एक ढ़ोल खरीद कर लाया और ढ़ोल बजाकर बहुत कड़ी मेहनत करके बंदरों को नाच सिखाने लगा।
लगभग एक सप्ताह में चारों बंदरों ने अच्छी तरह से नाचना सीख लिया। अब नरेश ने उन्हें कपड़े पहनाना शुरू किया। वे बंदर अच्छी अच्छी डिजाइन के कपड़े पहनकर अनेक प्रकार के भाव दिखाते हुए अपना नाच का कला दिखाने लगे।
बंदरो के उस नाच को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आने लगे। जब नरेश ने देखा की बंदर की नाच देखने के लिए दिन प्रतिदिन लोगों की भीड़ लगने लगी तो उसने स्टेज शो करना शुरू किया।
रोज पैसे में वृद्धि होने लगी। चारों तरफ उसके इन बंदरो के नाच का शोर मच गया। उसके बंदर अब बंदर नहीं रह गए थे, वे आदमियों के जैसे काम करने लगे थे।
शो शुरू होने से पहले नरेश स्टेज पर आता और लोगों से हमेशा एक ही बात कहता था की मेहनत के साथ साथ प्रयत्न करने से भी किसी भी प्राणियों के स्वभाव को हम बदल सकते हैं।
उसे अपने बंदरो को लेकर के बहुत ज्यादा घमंड हो गया था। कुछ लोगों को उसकी बातें बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती थी। एक दिन नरेश ने बहुत बड़ा स्टेज सो रखा। लोगों की भीड़ भी बहुत जमा हो गई थी।
स्टेज पर बंदरो का नाच शुरू हो गया, तभी किसी ने एक मुठी बादाम स्टेज पर फेक दिया। बादाम को देखते ही बंदरों ने नाचना छोड़कर बादाम के दाने पर टूट पड़े। वे आपस में लड़ने-झगड़ने लगे। एक दूसरे से बादाम को छीनने लगे।
इसके वहज से उनके कपडे भी फट गए। बंदरो का नाच देखने वाले शोर मचाने लगे। तभी फिर एक और आदमी ने बंदरो को दिखा कर बादाम के दाने स्टेज से निचे फेक दिया।(जाति स्वभाव नहीं छूटता)
अब बंदर स्टेज से उतरकर नीचे आ गए। चारों ओर भगदड़ मच गई। बड़ी मुश्किल से उन बंदरों को काबू में किया गया। तब लोगों ने नरेश से कहा की तुम्हे अपने बंदरो पर बहुत घमंड हो गया था।
तुम ये नहीं जानते थे की ये एक ऐसी प्राणी हैं जिनमें छिना – झपटी का स्वभाव इनके जाति में हमेशा से रहती हैं, जिसे तुम चाहे कितना भी प्रयत्न कर लो, ये अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ते है, और ना उसे कभी बदला जा सकता हैं।
लोगों की बात नरेश को अच्छे से समझ में आ गई और वह उस दिन से कभी भी घमंड नहीं किया। और उस दिन उसे एक रुपया भी नहीं मिला, उसे खाली हाथ उदास होकर के अपने घर लौटना पड़ा।
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