Ghar Ka Bhedi Lanka Dhaye Ka Arth
( Ghar Ka Bhedi Lanka Dhaye ) घर का भेदी लंका ढाए का अर्थ है कि जैसे कोई व्यक्ति जो एक संगठन, परिवार या समुदाय का हिस्सा होता है, वह अपनी असली उद्देश्यों को छिपाकर दूसरों के सामने मासूम बनता है और उनका विश्वास जीतता है।
फिर वह दूसरों को धोखा देता है और उन्हें नुकसान पहुंचाता है। इस मुहावरे का दूसरा उदाहरण व्यापारिक मानचित्र में देखा जा सकता है। कई बार कोई व्यापारी अपने साथियों और अपने व्यापारिक संगठनों के साथ भागीदारी करते हैं।
लेकिन उनकी असली मंशा उनके साथियों को पता नहीं चलती है। उन्हें अपने आप को ऐसा दिखाते है की वो आपके साथ है और दूसरों के विश्वास को जीत लेते हैं, लेकिन असल में वे विश्वासघात करके उन्हें नुकसान पहुँचाना चाहते है।
घर का भेदी लंका ढाए मुहावरा हमें यह सिखाता है कि हमें अपने आस-पास के लोगों के साथ सतर्क रहना चाहिए। हमें उनके उद्देश्य और कार्यों को ध्यान से समझना चाहिए।
और अपनी सुरक्षा और हित का ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए हमें विश्वास के साथ हाथ मिलाना चाहिए, लेकिन साथ ही सावधान भी रहना चाहिए ताकि हमें किसी भी प्रकार का नुकसान न हो।
Ghar Ka Bhedi Lanka Dhaye की कहानी
घर का भेदी लंका ढाए, एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है। इस कहावत के अनुसार बाहर के शत्रु से ज्यादा खतरनाक, शत्रु रहता है घर का। कोई व्यक्ति अगर किसी बाहरी शत्रु से मिल जाए और उसे अपने घर के सारे भेद तथा कमजोरियां बता देता है तो इसमें हमारी हार निश्चित हो जाती है।
इसलिए कहा जाता है कि घर का भेदी लंका ढाए। इस कहावत में सबसे पहला नाम विभीषण का दिया जाता है जिन्होंने रावण के सारे भेद श्री राम को बताए थे।
हमारे देश में इसी प्रकार से अनेक विभीषण पैदा हुए हैं। इनमें जयचंद और मीर जाफर प्रमुख है जयचंद ले आक्रमणकारी गौरी की मदद की थी, जिसके कारण से ही पृथ्वीराज चौहान जी की हार हुई थी।
उसके बाद ही हिंदुस्तान में हिंदू राष्ट्र का सर्वनाश होने लगा और और मुसलमानों ने हिंदुस्तान में अपना शासन स्थापित किया। इसी प्रकार मीर जाफर ने भी अंग्रेजों की मदद की। जिसका नतीजा यह निकला कि भारत 200 सालों तक अंग्रेजों की गुलामी करता रहा।
कहानी कुछ इस प्रकार है कि मीर जाफर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला का सेनापति था। उस समय अंग्रेज भारत पर धीरे-धीरे कब्जा कर ही रहे थे। वे लोग धीरे-धीरे बंगाल में अपनी फौज को इकठ्ठा कर रहे थे।
इस समय तक अंग्रेज केवल व्यापारी नहीं रह गए थे। वे भारत पर राज्य करने के लिए यहां धीरे-धीरे अपने सैन्य बल को भी मजबूत कर रहे थे तभी इस बात की भनक वहां के नवाब सिराजुद्दौला को लगी।
फिर क्या था, सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों पर आक्रमण किया और अंग्रेजों को हरा दिया। अंग्रेजों ने अपनी हार स्वीकार की, और नवाब से सुलह करने की मांग की। सिराजुद्दौला ने भी उन्हें माफ किया और शांति पूर्वक व्यापार करने की अनुमति दे दी।
उस समय क्लाइव, ईस्ट इंडिया कंपनी का गवर्नर था। उसने मीरजाफर को बंगाल की राजगद्दी देने का वादा किया, और उसे अपने साथ मिला लिया। मीर जाफर नवाब बनने के लालच में आ गया उसने सिराजुद्दौला के खिलाफ षड्यंत्र रचा और उसके सारे भेद अंग्रेजों को बता दिया।
मौका पाकर अंग्रेज सिराजुद्दौला के खिलाफ युद्ध लड़े और सिराजुद्दौला को उस युद्ध में बुरी तरीके से पराजित कर दिया। उस युद्ध में सिराजुद्दौला को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद अंग्रेजों ने पूरी तरीके से भारत पर अपना कब्जा करना स्टार्ट कर दिया।
बंगाल बिहार तथा उड़ीसा में उनका ही राज्य स्थापित हो गया इस प्रकार मीर जाफर की गद्दारी की वजह से भारत को 200 साल अंग्रेजों की गुलामी झेलना पड़ा। इसलिए कहा जाता घर का भेदी लंका ढाए।
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