कहा गया हैं की जैसी संगत, वैसी रंगत ( Jaisi Sangat Waisi Rangat )। जैसा की हम जानते हैं की इस जीवन में संगत का असर सबके ऊपर पड़ता हैं चाहे वो मनुष्य हो या फिर कोई जीव जंतु।
हम जैसी संगति में रहते हैं वैसी ही हमारी बुद्धि भी हो जाती हैं। संगति का असर मनुष्य के मन, बुद्धि और स्वभाव पर पड़ता हैं। इसलिए कहा जाता हैं की हमें अच्छे के साथ रहना चाहिए उससे हमारे जीवन में अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
कहानी : Jaisi Sangat Waisi Rangat
किसी राज्य में एक जगदीश नाम का एक आदमी रहता था। वह बहुत गरीब था। वह रोज जंगल में जाता और कुछ सुखी लकड़िया इकट्ठा करता और शाम को उसे बाजार में बेच देता था। उसी से उसका घर का खर्चा चलता था।
एक दिन बहुत तेज से बारिश हो गई। जंगल के सारी लकड़ी बारिश की वजह से गीली हो गई। अब जगदीश सोचने लगा की आज तो एक भी सारी लकड़ी गीली हो गई हैं आज मैं बाजार में क्या बेचूँगा।
आज का खर्चा कैसे चलेगा, ये सब सोच सोचकर और उदास होकर जंगल में एक पेड़ के निचे बैठ गया। तभी जंगल में ही उसे एक एक डाकू का अड्डा दिखा। वही पे एक तोता भी था जगदीश ने उसे पकड़ लिया।
घर लौटते समय उसे एक आश्रम मिला। वहा पे भी एक तोता था। जगदीश ने सोचा की अगर मैं इन तोते को भी पकड़ कर बाजार मेंबेचूँगा तो बहुत अच्छे पैसे मिल जायेंगे। फिर उसने बहुत मेहनत करके उन दोनों तोतों को पकड़ा और उसे घर लेकर आया।
दूसरे दिन वह दोनों को अलग अलग पिंजरे में रखा और दोनों तोते को बाजार में लेकर गया और दोनों के अलग अलग दाम लगाया। लोग आते और उसका दाम पूछते। तब जगदीश कहता की एक का दाम एक रुपया और दूसरे का दाम दो लाख रुपया बताता था।
इस तरह के दाम सुनकर लोग चौक जाते थे क्योंकि देखने में दोनों एक ही तरह के थे। बाजार में किसी ने भी उन तोतों को नहीं ख़रीदा। यह बात वहाँ के राजा को पता चली की, उन्होंने अपने एक नौकर को आदेश दिया की जगदीश को दोनों तोतों के साथ इस राज महल में लेकर आओ।
नौकर राजा के आदेश का पालन किया और थोड़ी देर बाद जगदीश को तोता सहित राजमहल में लेकर आ गया। राजा ने जगदीश से पूछा की ये दोनों तोतों का दाम अलग-अलग क्यों हैं, देखने में तो दोनों एक जैसे हैं।
तब जगदीश ने कहा – महाराज इसका कारण मैं अभी नहीं बताउगा, जब आप इसे खरीद लेंगे तो आपको अपने आप समझ आ जायेगा। उस समय यदि आपको लगे की मैं इनका दाम गलत बताया हूँ, तो आप मुझे सजा दे सकते हैं।
राजा ने जगदीश के कहने पर दोनों तोतों को खरीद लिया, और उसे पैसे दे दिए। जगदीश खुशी खुशी अपने घर चला गया। दूसरे दिन राजा सुबह सुबह उन दोनों तोतो को देखने गया।
जैसे ही वह एक पिंजड़े के पास गया वैसे ही उस पिंजड़े के तोता जोर जोर से चिल्लाने लगा- अरे! दौड़ों-दौड़ों इसे पकड़ों। यह दुष्ट कहा से आ गया, मारो इसे मारो। इसके हाथ पैर तोड़ दो, इसका गला काट दो। इसे लूट लो।
राजा को उस तोता का बोली सुनकर बहुत गुस्सा आया। वह तुरंत वहाँ से हटकर कर दूसरे तोते के पास गया। राजा को देखते ही दूसरा तोता बोला – आइये आइये महाराज आपका स्वागत हैं। हमारे कुटिया में मेहमान आये हैं, आइये बैठिये, इनके लिए पानी लाओ।
यह सब देखकर राजा को बहुत हैरानी हुई। उसने तुरंत अपने नौकर से कहकर जगदीश को बुलवाया और उससे इन दोनों के आवाज में फर्फ के बारे में पूछा। जगदीश ने बताया की महाराज मैं एक तोता को डाकुओ के अड्डे से और दूसरे को एक ऋषि के आश्रम से पकड़ा था।
डाकू लोगों को मारते-पीटते, गालिया देते और लुटते थे। उनलोगों की बातों को सुनकर पहले वाले तोता ने यह सब शीख लिया था और वैसी ही बातें करने लगा था।
दूसरा वाला तोता, ऐसा बोलना इसलिए शीख लिया था की वह एक साधु के आश्रम में रहता था, और आश्रम में लोगों का हमेशा स्वागत होता हैं। वेद- पुराणों का पाठ होता हैं और वहाँ हमेशा मीठा शब्द बोला जाता हैं।
यही कारण हैं की दूसरा वाला तोता सदा अच्छी-अच्छी बातें करता हैं यह सब संगत का असर हैं। अच्छी संगती इंसान के अंदर अच्छा व्यवहार उत्पन्न करती हैं और कुसंगत इंसान को हमेशा गलत रास्ते पर ले जाती हैं।
इसलिए हम सभी लोगों को सदा श्रेष्ठ और ज्ञानी लोगो के ही सांगत में रहना चाहिए। इसलिए कहा गया हैं की जैसी संगत, वैसी रंगत ( Jaisi Sangat Waisi Rangat )।
अवलोकन – inhindistory.com के द्वारा बताई गई, जैसी संगत, वैसी रंगत ( Jaisi Sangat Waisi Rangat )। की कहानी आपको कैसी लगी हमें comment कर के अवश्य बताये।